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________________ १० भगवतीसूत्रे असंख्यात समयस्वरूपा भवन्तीति भावः । 'पोऽगलपरियट्टे णं भंते !' पुनल परिवर्त्त इति पुलपरिवर्ते खलु भदन्त ! 'कि संखेज्जा समया' कि संख्याताः समयाः, 'असंखेज्जा समया' असंख्याताः समयाः, 'अनंता समया' अनन्ताः समया वा किमिति पृच्छा, उत्तरमाह - 'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'जो संखेज्जा समया णो असंखेज्जा समया' नो संख्याताः समया । पुलपरिवर्ते नो या असंख्याताः समयाः किन्तु 'अनंता समय अनन्ताः समयाः पुद्रलपरि इति । एवं तीयद्धा - अणागयद्धा सम्बद्धा' एवमतीवाद्धा अनागताद्धा सर्वाद्धा, नो संख्यातसमयरूपा न वा असंख्यातसमयरूपाऽपितु अनन्तसमयात्मकेति । के काल विशेष न संख्यात समयरूप होते हैं, न अनन्तसमय रूप होते हैं किन्तु असंख्यात समय रूप ही होते हैं । 'पोग्गल परियणं भंते! किं संखेज्जा समया असंखेज्जा समया, अनंता समया पुच्छा, श्री गौतमस्वामी ने इस सूत्र द्वारा प्रभुश्री से ऐसा पूछा है - हे भदन्त ! एक पुद्गल परिवर्त क्या संख्यात समय रूप होता है ? अथवा असंख्यात समयरूप होता है अथवा अनन्तसमयरूप होता है इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं- 'गोधमा ! जो सखेज्जा समया, णो असंखेज्जा समया अनंता समया' हे गौतम ! एक पुद्गल परिवर्तरूप काल न संख्यात समय रूप होना है न असंख्यात समयरूप होता है, किंतु अनन्तसमवरूप होता है। 'एवं तीयद्धा अणागयद्वा सव्वद्धा' इसी प्रकार से अतीतकाल, अनागत काल और सर्वाद्धारूप काल ये सब काल भी अनन्त समय रूप होते हैं । રૂપ કાળ આ બધા આનપ્રાણથી લઇને ઉત્સર્પિણી સુધિના કાળ વિશેષ સંખ્યાત સમય રૂપ નથી તેમ અનત સમય રૂપ પશુ નથી પરંતુ અસખ્યાત સમય રૂપ જ હાય છે. पोग्गुलपरियट्टे णं भंते किं संखेज्जा समया असंखेज्जा समया अणता समया पुच्छा' गौतम स्वाभीये मा સુત્ર દ્વારા પ્રભુશ્રીને એવું પૂછ્યું છે કેહે ભગવન્ એક પુદ્ગલ પરિવત શુ સંખ્યાત સમય રૂપ હોય છે. અથવા અસંખ્યાત સમય રૂપ હોય છે ? કે અનંત સમય રૂપ હોય છે ? આ પ્રશ્ન ના उत्तरमां अनुश्री उडे छे - 'गोयमा णो संखेज्जा समया णी असंखेज्जा समया अनंता समया' हे गौतम! 8 युगल परिवर्त ३५ डा संख्यात सभय રૂપ હોતા નથી તેમ અસંખ્યાત સમય રૂપ પણ હાતા નથી, પરંતુ અનંત समय ३५ होय छे 'एवं तीयद्धा अणागयद्धा सव्वद्धा' येन प्रभाशे मतीत કાળ (ભૂતકાળ) આાનગત કાળ ભવિષ્યકાળ અને સર્વાધા રૂપ કાળ મા બધા કાળા પણુ અનત સમય રૂપ જ હોય છે. શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬
SR No.006330
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages698
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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