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________________ २१४ भगवतीस्त्रे सरागत्वेऽपि निःसङ्गताया अपि शाखे प्रतिपादितत्वात् । यद्वा नो संज्ञा इत्यस्य ज्ञानसंज्ञेति नाम तत्र ज्ञानयज्ञायां पुलाकनिग्रन्थस्नातका उपयुक्ता भवन्ति ज्ञानप्रधानोपयोगवन्तः, न पुनराहारादिसंज्ञोरयु का भवन्ति, बकुशादयस्तु नोसंज्ञा. तथा संज्ञा, उभयोरुपयोगवन्तो भवन्तीति भावः 'बउसे णं भंते ! पुच्छा' बकुशः खलु भदन्त ! किं संज्ञोपयुक्तो भवेत् नो संज्ञोपयुक्तो वा भवेदिति पृच्छा प्रश्नः । भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'सन्नोवउत्ते वा होज्जा नो सन्नोवउत्ते वा होज्जा' संज्ञोपयुक्तो वा भवेत् नौसंज्ञोपयुक्तो वा भवेदिति । 'एवं पडिसेवणाकुसीलेवि एवम्-बकुशवदेव प्रतिसेवनाकुशीलोऽपि संज्ञोपयुक्तो पर भी सर्वथा आसक्ति रहितता हो ही नहीं सकती है ऐसा नियम नहीं कहा जा सकता है। क्योंकि बकुश आदि में सरागता होने पर भी निःसङ्गना का भी प्रतिपादन शास्त्र में किया गया है। अथवा'नो संज्ञा' इसका नाम ज्ञान संज्ञा ऐसा भी हैं । इस अपेक्षा ज्ञान संज्ञा में पुलाक, निर्ग्रन्थ और स्नातक ये उपयुक्त होते हैं अर्थात् इनका उप. योग ज्ञान प्रधान होता है। आहारादि संज्ञा प्रधान नहीं होता है ? बकुश आदि तो नो संज्ञोपयुक्त तथा संज्ञोपयुक्त दोनों प्रकार के होते हैं। अर्थात् वे नो संज्ञा और संज्ञा दोनों के उपयोग वाले होते हैं। ___'बउसेणं पुच्छ।' हे भदन्त ! बकुश क्या संज्ञोपयुक्त होता है अथवा नो संज्ञोपयुक्त होता है ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोयमा! सन्नोवउत्ते वा होज्जा, नो सन्नोव उत्ते वा होजा' हे 'गौतम ! बकुश संज्ञोपयुक्त भी होता है और नो संज्ञोपयुक्त भी होता है। ‘एवं पडि. શકતુ નથી. એ નિયમ કહી શકાતું નથી કેમકે-બકુશ વિગેરેમાં સરાગ પણું હોવા છતાં પણ શાસ્ત્રમાં નિઃસંગતાનું પ્રતિપાદન કરવામાં આવ્યું છે. अथवा 'नो संज्ञा' नु नाम ज्ञानसा मे ५ छ. ते अपेक्षा ज्ञान સંજ્ઞામાં મુલાક, નિન્ય અને સ્નાતક એ ઉપયુક્ત હોય છે. અર્થાત તેમને ઉપગ જ્ઞાનપ્રધાન હોય છે. આહાર વિગેરે સંજ્ઞાપ્રધાન હેતે નથી. બકુશ વિગેરે તે નેસંજ્ઞોપયુક્ત તથા સંશોપયુક્ત આ બંને પ્રકારના હોય છે, અર્થાત્ તેઓ ને સંજ્ઞા અને સંજ્ઞા બનેના ઉપગવાળા હોય છે. 'बउसे गं पुच्छा' सावन मश शुसज्ञोपयुटत हाय छे १ ना सज्ञोपयुत आय छ १ मा प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री ४ छ -गोयमा ! सन्नोवउत्ते वा होज्जा, नोसन्नावउत्ते वा होज्जा' गौतम ! यश सज्ञो. ५युत ५५ उय छ, भने नासो५युत ५५ डाय छे. 'एव पडिखेवणा શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬
SR No.006330
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages698
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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