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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.६ सू०१० विंशतितम परिमाणद्वारम् १९७ वेदनं करोतीति प्रश्ना, भगवानाह-गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'नियमै अट्ठकम्मपगडीओ वेदेई' नियमात् अष्टकर्मप्रकृतीर्वेदयति नियमतोऽष्टानामपि कर्मणां. वेदनं करोति पुलाक इत्यर्थः ‘एवं जाव कसायकुसीले' एवं यावत् कषायकुशीला, यावत्पदेन बकुशप्रतिसेवनाकुशीलयोहणं भवति तथा च पुलाकवदेव बकुशमति. सेवनाकुशीलकषायकुशीलाः सर्वेऽपि नियमतोऽष्टकर्मणां वेदनं कुर्वन्तीति। 'णियं. ठेगं पुच्छा' निर्ग्रन्थः खलु भदन्त ! कतिकर्मप्रकृतीवेदयतीति प्रश्नः। भगवानाइ'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'मोहणिज्जवजाओ सत्तकम्मपगडीओ वेदेई' मोहनीयवर्जाः सप्त कर्मप्रकृतीर्वेदयति निम्रन्थः, न वेदयति मोहनीयं कर्म निन्थः, मोहनीयकर्मणामुपशान्तत्वात् क्षीणत्वाद्वेति भावः । 'सिणाए णं पुन्छ।' स्नातक खलु भदन्त ! कतिकर्मप्रकृतीवेदयतीति प्रश्नः, भगवानाह-गोयमा' इत्यादि, प्रभुश्री कहते हैं-'गोयमा ! नियमं अgकम्मपगडीओ वेदेइ' हे गौतम! वह नियम से आठ कर्म प्रकृतियों का वेदन करता है। ‘एवं जाय. कसायकुसीले' इसी प्रकार से धकुश, प्रतिसेवनाकुशील और कषायकुशील ये साधुजन भी नियम से आठ कर्म प्रकृतियों का वेदन करते हैं। 'णियंठेणं पुच्छा' हे भदन्त ! निग्रंथ ! कितनी कर्मप्रकृतियों का वेदन करता है ? उत्तरमें प्रभुश्री कहते हैं-'गोयमा! मोहनीयवज्जामो सत्सकम्मपगडीओ वेदेह' हे गौतम ! मोहनीयकर्म को छोडकर वह सातकर्म प्रकृतियों का वेदन करता है। मोहनीय कर्म का जो वह वेदन नहीं करता है सो उसका कारण यह है कि उसके मोहयनीय कर्म अथवा तो उपशान्त हो चुका होता है अथवा क्षीण हो चुका होता है। 'सिणाए णं पुच्छा' हे भदन्त ! स्नातक कितनी कर्मप्रकृतियों का वेदन करता है ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोयमा वेयणिज्ज आउय छ -'गोयमा ! नियम अट्ट कम्मपगडीओ वेदेइ' गौतम ! ते नियमयी मा ४ प्रतियोनु वेहन रे छे. 'एवं जाव कसायकुसीले' २४ प्रमाणे બકુશ પ્રતિસેવનાકુશીલ, અને કષાયકુશીલ આ સાધુઓ પણ નિયમથી 2018 में प्रतियोनु वहन ४२ छ 'णियंठेणं पुच्छा' है भगवन निय કેટલી કમ પ્રકૃતિનું વેદન કરે છે. આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી કહે છે કે'गोयमा ! मोहणीजवजाओ सत्त कम्मपगडीओं वेदेई' के गौतम! मोहनीय કર્મને છેડીને તે સાત કમ પ્રકૃતિ નું વેદન કરે છે. તે મોહનીય કર્મનું વેદન કરતા નથી તેનું કારણ એ છે કે–તેઓને મેહનીય કર્મ કાંતે ઉપશાંત થઈ ચૂકયું હોય છે, અથવા ક્ષીણ થઈ ચૂકેલ છે. 'सिणाएणं पुच्छा' मावन स्नात ही ४ प्रतियानु वहन ४२ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬
SR No.006330
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages698
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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