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________________ २७० भगवतीसरे पावत् निग्रन्थः । अत्र यावत्पदेन बकुशपतिसेवनाकुशीलकषायकुशीलानां संग्रहोभवति तथा च बकुशादारभ्य निर्ग्रन्थान्ताः सर्वेऽपि त्रिविधमनोवाकायात्मकयोगवन्तो भवन्तीत्यर्थः । 'सिणाए-णं पुच्छा' स्नातकः खलु पृच्छा हे भदन्त । स्नानका सयोगी भवति अयोगी वा भवति इति प्रश्नः। भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'सजोगी वा होज्जा-अजोगी वा होज्जा' सयोगी वा भवेत् अयोगी वा भवेत् । 'जह सजोगी होज्जा कि मणजोगी होज्जा सेसं. जहा पुलागस्स' यदि सयोगी भवेत् किं मनोयोगी भवेद शेषं यथा पुलाकस्य पुलाकमकरणे यथा कथितं तथैव इहापि सर्वमवगन्तव्यम् मनोयोगी भवेत् वचोयागी भयेत् काययोगी च भवेदिति । इति योगद्वारम् १६ वाला भी होता है, वचनयोग वाला भी होता है और काययोग वाला भी होता है। 'एवं जाव णियंठे' इस प्रकार का कथन यावत् निर्ग्रन्थ तक जानना चाहिये । यहां यावत्पद से 'बकुश का प्रतिसेवनाकुशील का और कषायकुशील का' संग्रह हुआ है। तथा च बकुश से लेकर निग्रन्थ तक के समस्त साधु त्रिविध योगवाले होते है। 'सिणाए णं पुच्छा' हे भदन्त ? स्नातक सयोगी होता है अथवा अयोगी होता है ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोयमा ! सजोगी वा होज्जा अजोगी वा होज्जा' हे गौतम ! स्नातक सयोगी भी होता है और अयोगी भी होता है । 'जह सयोगी होज्जा किं मणजोगी होज्जा, सेस जहा पुलागस्त' हे भदन्त ! यदि वह स्नातक योगसहित होता है तो क्या वह मनोयोग सहित होता है ? अथवा वचनयोग महित होता है ? अथवा काययोगसहित होता है ? इस प्रकार से किये गये इस प्रश्न का उत्तर पुलाक के सम्बन्ध में दिये गये उत्तर के ગૌતમ! તે મને ગવાળા પણ હોય છે, વચનગવાળા પણ હોય છે. અને आययोग पर डाय छे. 'एवं जाव णि यंठे' मारीतनु यावत् पशन प्रतिસેવનાકુશીલના, કષાય કુશીલના અને નિગ્રંથના કથન સુધી સમજવું જોઈએ. એટલે કે બફશથી લઈને નિગ્રંથ સુધીના સઘળા સાધુઓ ત્રણ પ્રકારના યોગો पाणाडाय छे. 'सिणाए णं पुच्छो' ७ भगवान् स्नात सयामी हाय छ१३ अयोगी राय छ १ मा प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री । छ-'गोयमा ! सजोगी वा होज्जा, अजोगी वा होज्जा' हे गोतम ! स्नात सयेगी ५५ लाय, भने अयोगी ५५ डाय छे. 'जइ सजोगी होज्जा कि मणजोगी होज्जा सेसं जहा पुलागस्व' भगवन् न त स्नात योग सहित डाय छ, तशु તે મનોયોગ સહિત હોય છે ? અથવા વચનયોગ સહિત હોય છે? અથવા કાયયોગ સહિત હોય છે? આ પ્રમાણે કરેલા પ્રશ્નને ઉત્તર ગુલાકના સંબંધમાં શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬
SR No.006330
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages698
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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