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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.६ सू०५ द्वादशं कालद्वारनिरूपणम् ११५ भवेत् दुषमसुषमाकाले वा भवेत् सुषमदुष्पाकाले वा भवेत् सुषमाकाले वा भवेत् सुषमसुषमाकाले वा भवेदिति पृच्छा प्रश्नः । भगवानाह-गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गोतम ! 'जम्मणं डुच्च णो दुस्समदुस्समाकाले होजा जहेब पुलाए' जन्म प्रतीत्य नो दुष्पमदुष्षमाकाले भवेत् बकुशः यथैव पुलाकः, पुलाकविषये यथा कथितं सर्व बकुशविषयेऽपि ज्ञातव्यम् तथाहि-दुष्पमाकाले भदेवदुष्पमसुषमाकाले वा भवेत् सुषमदुषमाकाले वा भवेत् नो सुषमाकाले भवेतन वा सुषमसुषमाकाले भवेदिति । 'संतिभावं पडुच्च णो दुस्समदुस्समाकाले होज्जा' सद्भावं प्रतीत्य सभावापेक्षया इत्यर्थः, नो दुषमदुषमाकाले भवेत्, 'नो दूसमा. है ? अथवा दुःषमतुषमा काल में होता है ? अथवा सुषम दुष्षमाकाल में होता है ? अथवा सुषमा काल में होता है ? अथवा सुषमसुषमा. काल में होता है ? इस गौतमस्वामी के प्रश्न के समाधान निमित्त प्रभुश्री उनसे कहते हैं-'गोयमा! जम्मणं पडुच्च' हे गौतम ! जन्म की अपेक्षा से तो वह बकुश साधु उत्सपिणी काल के 'नो दुस्समदुस्तमा काले होज्जा जहेव पुगए' दुष्षमदुष्षमा काल में उत्पन्न नहीं होता है इस प्रकार का जैसा कथन पुलाक साधु के विषय में कहा गया है उसी प्रकार का समस्त कथन पकुश के सम्बन्ध में भी कहना चाहिये । तथा च वह बकुश साधु उत्सर्पिणी काल के दुःषमा आरे में उत्पन्न होता है दुष्षम सुषमा काल में उत्पन्न होता हैं सुषमदषमकाल में उत्पन्न होता है सुश्माकाल में अथवा सुषमसुषमाकाल में वह उत्पन्न नहीं होता है। 'संतिभावं पडुच्च णो दुस्समदुस्समा काले होज्जा' सद्भाव की अपेक्षा से वह बकुश साधु दुषम. અથવા સુષમ દુષમા કાળમાં હોય છે? અથવા સુષમા કાળમાં હોય છે? અથવા સુષમ સુષમા કાળમાં હોય છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી ગૌતમ २वामीन अछे 3-'गोयमा! जम्मणं पडुच्च' हे गौतम! मनी भयेसाथी तो तभ३॥ साधु SAGAgी अपना 'नों दुस्सम दुस्समाकाले होज्जा जहेव पुलाए' षम हुपम मा उत्पन्न था नथी. म. प्रमाणुनु २ પ્રમાણે પુલાક સાધુના સંબંધમાં કથન કર્યું છે, એ જ પ્રમાણેનું સઘળું કથન બકુશ સાધુના સંબંધમાં પણ કહેવું જોઈએ. તથા તે બકુશ સાધુ ઉત્સર્પિણી કાળના દુઃષમાં આરામાં ઉત્પન્ન થાય છે. દુષમ સુષમા કાળમાં ઉત્પન્ન થાય છે. સુષમ દુષમ કાળમાં ઉત્પન્ન થાય છે સુષમા કાળમાં तथा सुषम सुषमा मा त पन यता नथी. 'संतिभावं पडुच्छ' समापनी अपेक्षाथी त श साधु 'नो दुस्समदुस्समाकाले होज्जा'
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬