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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.४१०२ जीवादि २६ द्वाराणां कृतयुग्मादित्वम् ७६१ प्रदेशार्थतया जीवमदेशाश्रयणेन कृत पुग्मो भवति, स्यात्-कल्योज इति भावः । 'सिद्धे णं भंते ! पएसट्टयाए कि कडजुम्मे पृच्छा ? सिद्धः खलु भदन्त ! प्रदे. शार्थतया किं कृतयुग्मा पृच्छा ? हे भदन्त ! प्रदेशार्थतया सिद्धाः किं कृतयुग्मरूप स्च्योजो द्वापरयुग्मः कल्योजो वेति प्रश्न: ? भगवान् आह-'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'कडजुम्मे' कृतयुग्मः सिद्धपदेशानामसंख्यातत्वात् । 'नो 'तेश्रोए' नो योजः । 'नो दावरजुम्मे' 'नो द्वापरयुग्मः 'नो कलिओगे' नो कल्योजरूपी भवतीति । 'जीवा णं मंते ! पएसट्टयाए कि कडजुम्मा पुच्छा ?' तथा च नैरयिक से लेकर वैमानिक तक का जीव समुच्चय जीव के जैसा प्रदेशरूप से कृतयुग्म ही होता है। व्योजादिरूप नहीं होता है। तथा-शरीरप्रदेश की अपेक्षा से वह कदाचित् कृतयुग्मरूप भी होता है कदाचित् व्योजरूप भी होता है कदाचित् छापरयुग्मरूप भी होता है
और कदाचित् कल्योजरूप भी होता है। _ 'सिद्धे णं भंते पएसट्टयाए कि कडजुम्मे पुच्छा' इस सूत्रपाठ द्वारा श्री गौतमस्वामी ने प्रभुश्री से ऐसा पूछा है-हे जगद्उद्धारक भदन्त ! प्रदेशरूप से क्या एक सिद्ध जीव कृतयुग्मरूप होता है ? अथवा योजरूप होता है ? अथवा द्वापरयुग्मरूप होता है ? अथवा कल्योजरूप होता है ? इसके उत्तर में प्रभुश्री उनसे कहते हैं 'गोयमा' हे गौतम ! एक सिद्ध जीवप्रदेश रूप से 'कडजुम्मे' असंख्यातप्रदेशों वाला होने के कारण कृत. युग्मरूप होता है । 'नो तेओए' वह योजरूप नहीं होता 'नो दावरजुम्मे' द्वापरयुग्मरूप नहीं होता 'नो कलिओगे' और न कल्योजरूप होता है। 'जीवा णं भंते ! पएसट्टयाए कि कडजुम्मा पुच्छा' इस सूत्रपाठ द्वारा પણથી કૃતયુગ્મ રૂપ જ હોય છે. જાદિ રૂપ લેતા નથી. તથા શરીર પ્રદેશની અપેક્ષાથી તે કોઈવાર કૃતયુગ્મ રૂપ પણ હોય છે, અને કઈ વાર કલ્યાજ રૂપ પણ હોય છે.
'सिद्धे णं भंते ! पएसट्टयाए कि कड़जुम्मे पुच्छा' मा सूत्रा४थी श्रीगौतम સ્વામીએ પ્રભુશ્રીને એવું પૂછયું છે કે-હે જગદદ્ધારક ભગવન પ્રદેશપણાથી એક સિદ્ધ જીવ શું ? કૃતયુગ્મ રૂપ હોય છે અથવા જ રૂપ હોય છે ? અથવા દ્વાપરયુગ્મ રૂપ હોય છે? અથવા કલ્યાજ રૂપ હોય છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં प्रभुश्री छ है-'गोयमा !' 3 गौतम ! ४ सिद्ध १ प्रदेशपाथी 'कडजुम्मे' असण्यात प्रदेशका उपाथी कृतयुग्म ३५ य छ, 'नो वेओए' ते व्या ३५ नथी. 'नो दावरजुम्मे' ते ६५२युम ३५ ५५ डात नयी 'नो कलिओगे' मने ते यो ३५ ५५ हात नथी. 'जीवा गं भते ! पएसटूयाए
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫