________________
भगवती सूत्रे
शानामसंख्यातत्वात् - अवस्थितत्याच प्रदेशतो जीवश्चतुरस्र एव भवतीति । 'नो तेओगे' नो व्योजः, 'नो दाद जुम्मे' नो द्वापरयुग्मः 'नो कलिओगे' नो कल्पोजः । 'सरीरपर से पहुच्च सिय कडजुम्मे' शरीरम देशान् प्रतीत्य स्यारकृतयुग्मः कदा रिकादिशरीरम देशानामनन्तरखेऽपि संयोगवियोगसम्भवात् अयुगपत् चतुष्प्रकारता स्वाद - इति । 'जाब सिय कलिओगे' या स्यात्कल्योजः यावत्पदेन स्यात् व्योमः स्यात् - द्वापरयुग्म एतयोर्ग्रहणं भवतीति । ' एवं जाव वैमाणिए' एवं यावद् वैमानिकः, अत्र यावत्पदेन नैरयिकादारभ्य ज्योतिष्क पर्यन्तजीवानां संग्रहो भवति । तथा च - नैरयिकादारभ्य वैमानिकान्तो जीवः समुच्चयजीवनदेव की अपेक्षा करके एक जीव कृतयु नरूप ही है। क्यों कि जीव के प्रदेश अवस्थित असंख्यात हैं इसलिये चार चार के अपहार से अन्त में चार बाकी रहते हैं । 'नो तेओगे' इसलिये वह ज्योज नहीं है 'नो दावरजुम्मे' द्वापर युग्मरूप नहीं है, और 'नो कलिओगे' न वह कल्यो जरूप ही है | 'सरीरपए से पटुच्च सिय कडजुम्मे' शरीर के प्रदेशों की अपेक्षा से वह कदाचित् कृतयुग्मरूप भी है । क्यों कि औदारिकादि शरीर प्रदेशों में अनन्तता होने पर भी संयोग और वियोग से अनवस्थित अनन्तता होने के कारण भिन्न भिन्न समय में उनमें चतुष्प्रकारता हो सकती है । कदाचित् वह योजरूप भी है कदाचित् वह द्वापरयुग्मरूप भी है और कदाचित् वह कल्यो जरूप भी है । 'एवं जाव वैमाणिए' इसी प्रकार का कथन यावत् वैमानिक तक जानना चाहिये। यहां यावस्पद से नैरयिक से लेकर ज्योतिष्क तक के जीव का ग्रहण हुआ है ।
કૃતગ્યુગ્મ રૂપ જ છે. કેમકે-જીવના પ્રદેશા અસંખ્યાત અને અવસ્થિત હોય છે. तेथी यारना अपडारथी अन्तमां यार मये छे. 'नो तेओगे' तेथी ते
७६०
३५ नथी. अथवा 'नो दावरजुम्मे' द्वापरयुग्भ ३५ नथी. तथा 'नो कलिओगे' ते उदयोग ३५ पशु नथी ' म्ररीरपरसे पडुच्च सिय कडजुम्मे' शरीरना प्रदेशोनी અપેક્ષાથી તે કેાઈવાર કૃતયુગ્મ રૂપ પણ છે, કેમકે ઔદારિક વિગેરે શરીર પ્રદેશેામાં અન્ત પશું હાવા છતાં પણ સંચેગ અને વિયેાગથી અનવસ્થિત અનંતપણુ' હાવાને કારણે જુદા જુદા સમયમાં તેએામાં ચાર પ્રકાર. પણ હાઈ શકે છે. કાઇવાર તે ચૈાજ રૂપ પણ છે, કોઈવાર તે દ્વાપરયુગ્મ ३५ पशु छे. सने अर्थ वार ते यो ३५ छे. 'एव' जाव वैमाणिए ' આ પ્રમાણેનું કથન ચાવતુ વૈમાનિકા સુધીમાં સમજવુ'. અહીંયાં યાવપદથી નૈરયિકથી લઇને જ્યાતિષ્ક સુધીના જીવેા ગ્રહણ કરાયા છે. તેંથી નૈયિકથી લઈને વૈમાનિક સુધીના જીવા સમુચ્ચય જીવાના કથન પ્રમાણે પ્રદેશ
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫