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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२४ ३.२० १०५ मनुष्येभ्यः प. तिरश्चामुत्पातः ३१९ से णं तिनि पलिोबमाई पुज्यकोडीपुहु त भहियाई उत्कर्षेण त्रीणि पस्योपयानि पूर्वकोटिपृथक्त्वाम्यधिकानि 'एवइयं जाव करेजा' एतावन्तं कालं सेवेत तथा -एतावत्कालपर्यन्तमेव गमनागमने कुर्यादिति सप्तमो गमः७ । 'सो चेव जहन्नकालटिएसु उववन्नो' स एव-संज्ञिमनुष्य एव जघन्यकालस्थिनिकतिर्ययोनिकेषु समुत्पन्नो भवेत् तदा-'एस चेव वत्तव्यया' एषैव-अनन्तरपूर्वकथितैवा सर्वापि वक्तव्यता वक्तव्या किन्तु पूर्वापेक्षया यद्वैलक्षण्यं तदाह 'नवरं' इत्यादि। 'नवरं कालादेसेणं जहन्ने पुरुषकोडी अंतोमुहुत्तममहिया' नवरं-केवलं कालादेशेन 'उक्कोसेणं तिनि पलिओवमाई पुवकोडोपुहुत्तमम् महियाई उत्कृष्ट से वह पूर्वकोटि पृथक्त्व अधिक तीन पल्यापम का है 'एवइयं जाव करेज्जा' इस प्रकार वह जीव इतने काल तक लियंग्गति और मनुष्य गति का सेवन करता है और इतने ही काल तक वह उस गति में गमनागमन करता है। ऐसा यह सातवां गम है। ____ 'सो चेव जहन्नकालहिइएस्सु उववन्नो' वही संज्ञी मनुष्य जघन्य काल की स्थितिवाले तिर्यग्योनिकों में जब उत्पन्न होने के योग्य होता है, तब इस सम्बन्ध में भी 'एस चेव वत्तन्वया' यही अनन्तर पूर्वकथित ही समस्त वक्तव्यता कह लेनी चाहिये। किन्तु पूर्व वक्तव्यता की अपेक्षा जो यहां की वक्तव्यता में अन्तर है उसे 'नवरं कालादेसेणं जहन्नेणं पुवकोडी अतोनुहुत्तमभहिया' इस सूत्र से प्रकट किया है। इसमें यह कहा है कि काल की अपेक्षा कापसंवेध जघन्य
अधि से पूटिने छे. अने उक्कोसेण तिन्नि पलिओवमाइ पुनकोडी. पहत्तमम्भहियाई टथी त पूटि पृथत्व मधि ऋण पक्ष्या५मना छ, 'एवइयं जाव करेज्जा' से शते ते मे सुधा तियति सन મનુષ્ય ગતિનું સેવન કરે છે, અને એટલા જ કાળ સુધી ને એ ગતિમાં ગમનાગમન કરે છે એ પ્રમાણે આ સાતમે ગ મ કહ્યો છે. ૭
सो चेव जहन्नकालद्विइएसु उववन्नो' से सभी मनुष्य ४५-य जनी સ્થિતિવાળા તિર્યચનિકમાં જયારે ઉત્પન્ન થવાને ગ્ય હોય છે. ત્યારે તે
धमा ५५ 'एस चेव वत्तव्वया' अपडेटा उस सघणु ४थन ४ ४ જોઇએ. પરંતુ પહેલા કહેલ કથન કરતાં અહિના કથનમાં જે જુદા પાડ્યું છે. 'नवर कालादेसेणं जहन्नेणं पुरकोटो अंतोमुत्तमब्भहिया' या सूत्राथी બતાવેલ છે. આ સૂત્રપાઠથી એ સમજાવ્યું છે કે-કાળની અપેક્ષાથી કાયસંવેધ
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫