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भगवतीस्त्रे गमप्रकरणे या वक्तव्यता भणिता निरवशेषा सैत्र वक्तव्यता सप्तम गमेऽपि वक्तव्ये त्यर्थः। सर्वथा प्रथमगमापेक्षया सादृश्यं निराकरोति-'नवरं' इत्यादिना। 'नवरं ओगाहणा जहन्नेणं पंचधणुसयाई नवरम्-केवलमवगाहना शरीरावगाहना पूर्वी पेक्षया भिद्यते सा च जघन्येन पञ्च धनुः शतानि 'उक्को सेण वि पंचधणुसयाई' उत्कर्षेणाऽपि पश्च धनुः शतानि 'ठिई अणुबंधो जहन्नेणं पुनकोडी' स्थित्यनु. बन्धौ जघन्येन पूर्वकोटिः 'उक्कोसेण वि पुषकोडी' उत्कर्षगाऽपि पूर्वकोटिरेव 'सेसं तहेव जाव भवादेसोति' शेषम्-परिमाणादि द्वारजातं तथैव-प्रथमगमसहशमेव शरीरावगाहना स्थित्यनुबन्धान विहाय अन्यत्सर्व परिमाणादि द्वारजातं भवादेशपर्यन्तं प्रथमगमवदेव अवगन्तव्यमिति । कालादेशेन कायसंवेधांशे वैल क्षण्यं प्रतिपादयत्राह-'कालादेसेणं' इत्यादि, 'कालादेसेणं जहन्नेणं पुचकोडीअंतोमुहुत्तमभहिया' कालादेशेन जघन्येन पूर्वकोटिरन्तर्मुहूर्ताऽभ्यधिका, 'उक्को. लेनी चाहिये परन्तु उस प्रथम गम को वक्तव्यता से इस सप्तम गम की वक्तव्यता में जो अन्तर आता है उसे सूत्रकारने 'नवर ओगाहणा जहन्नेणं पंच धणुसयाई उक्कोसेण वि पंचधणुसयाह इस सूत्रपाठ द्वारा प्रकट किया है। अर्थात् यहां शरीर की अवगाहना जघन्प से भी पांच सौ धनुष की है और उत्कृष्ट से भी पांच सौ धनुष को है। 'ठिई अणु. बंधो जहन्नेणं पुचकोडी, उक्कोसेण वि पुषकोडी' स्थिति और अनु. बन्ध जघन्य से पूर्वकोटि का है और उत्कृष्ट से भी एक पूर्वकोटि का है 'सेसं तहेव जाव भवादेसोत्ति' बाकी के और सब परिमाण आदि बारों का कथन यावत् भवादेश तक प्रथम गम के जैसा ही है । 'कालादेसेणं जहन्नेणं पुषकोडी अंतोमुहुत्तमम्भहिया' काल की अपेक्षा कायसंवेध जघन्य से एक अन्तर्मुहूर्त अधिक एक पूर्वकोटि का है और ગમના કથનમાં અને આ સાતમા ગમના કથનમાં જે જુદાપણું આવે છે, તે सूत्रमारे 'नवरं ओगाहणा जहन्नेणं पंच धणुसयाई उक्कोसेण वि पंच धगुसयाई આ સૂત્રપાઠ દ્વારા પ્રગટ કરેલ છે. અર્થાત્ અહિયાં શરીરની અવગાહના જaन्यथा भने अष्टथी भन्ने प्ररथी पायसो धनुषनी छे. 'ठिई अणुबंधो जहनेणं पुषकोडी उक्कोसेग वि पुषकोडी' स्थिति भने अनुमय वन्यथा पू.
ना छे. मने यी ५४ मे पूटिना छे. 'सेसं तहेव जाव भवा. देसोत्ति' माडीन परिभा विशेरे दातुं न यार साहेश सुधातुं पडेअभमा प्रमाणे 2. 'कालादेसेणं जहन्नेणं पुत्रकोडी अंतोमुहुत्तमभहिया' ४४०ी अपेक्षाथी यस वे५ वन्यथी ये मतभुत
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫