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भगवतीमत्रे चत्वारि गत्यूतानि 'टिई नहन्नेणं अंतोमुहुत्त' स्थिति धन्येन अन्तर्मुहूर्त्तम् 'उको सेण य छम्मासा' उत्कर्षेण च षण्मासाः, जघन्योत्कृष्टाभ्यामन्त, हत्तषण्मासप्रमाणा स्थितिश्चतुरिन्द्रियजीवानामिति । 'एवं अणुबंधो कि' एवमेव-स्थितिवदेव जघ. न्योत्कृष्टाभ्यामन्तर्मुहूर्तषण्मासप्रमाणोऽनुबन्धो भवति चतुरिन्द्रिय जीवानामिति । 'चत्तारि इंदियाणि चत्वारि इन्द्रियाणि-स्पर्शनरसनत्राणचभृषि भवन्ति चतुरिन्द्रिय जीवानामिति। 'सेस तं चेष' शेपम्-अवमानास्थित्यनुबन्धेन्द्रियादिभिन्नम् उपपातपरिमाणादिद्वारजातं तदेव यद्वीन्द्रियत्रीन्द्रियप्रकरणे कथितम् । कियत्पर्यन्तं द्वीन्द्रियप्रकरणपठित तथा शरीरावगाहनादिकं वक्तव्यं तदाह-'जाव' इत्यादि, 'जाव नवमगमए' यावदनवमगमके, 'कालादे सेणं जहन्नेणं बावीस वाससहस्साई छहि मासेहि अमहियाई' कालादेशेन-कालापेक्षया जघन्येन द्वाविशतिवर्ष सहस्राणि षड्भिर्मासैरभ्यधिकानि कालापेक्षया जघन्यतः कायसंवेध कोश प्रमाण है। 'ठिई जहन्नेणं अंतोमुहृत्तं उक्कोसेण य च्छम्मासा' स्थिति जघन्य से एक अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट से छह मास की है। 'एवं अणुबंधो वि' स्थिति के जैसा अनुबन्ध भी जघन्य से एक अन्तर्मुहर्त का और उत्कृष्ट से ६ मास का है। इन्द्रिय द्वार में इन चौहन्द्रिय जीवों के स्पर्शन, रसना घाण और चक्षु ये चार इन्द्रियां होती हैं। सेमंतं चेव' इनके अतिरिक्त अर्थात् अवगाहना स्थिति, अनुबन्ध
और इन्द्रिय के सिवाय-और सब उपपात परिमाण आदि द्वार सय दीन्द्रिय तेइन्द्रिय के प्रकरण में कहे गये अनुसार ही हैं। यहां नौ गम में 'कालादेसेणं जहन्नेणं बावीस वाससहस्साई छहि मासेहि अन्भहियाई काल की अपेक्षा जघन्य से छह मास अधिक २२ हजार मुहुत उक्कोसेण य च्छम्मासा' स्थिति न्यथी मे मत इतनी छ, भने Gटया भासनी छ. 'एवं अणुबंधो वि' स्थिति प्रमाणे अनुम'५ ५४ જધન્યથી એક અંતમુહૂર્તને અને ઉત્કૃષ્ટથી છ માસને છે. ઈન્દ્રિય દ્વારમાં આ ચાર ઇન્દ્રિયવાળા ને સ્પર્શન, રસના (જીભ) ઘાણ (નાક) અને ચક્ષુ (न) मा यार ४न्द्रये डाय छे. 'सेस त चेव' मा थन शिवाय मेटले - અવગાહના સ્થિતિ, અનુબંધ અને ઈદ્રિયદ્વારના કથન શિવાયનું બાકીનું એટલે કે ઉપપાત પરિમાણ વિગેરે દ્વારે સંબધીનું કથન બે ઈન્દ્રિય અને ત્રણ ઇદ્રિયવાળા જીવના પ્રકરણમાં કહ્યા પ્રમાણે જ સમજવું. અહિયાં નવમા ગમમાં 'कालादेसेणं बावीस वासहस्साई छहि मासेहि अब्भहियाई' जनी अपेक्षा
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫