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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२४ उ.१२ सू०३ द्वीन्द्रियेभ्थ पु. नामुत्पत्तिनिरूपणम् ८९ यो वा उत्कृष्टतः संख्याता असंख्याता वेत्यादिकं सर्वं द्वीन्द्रियादिवदेव ज्ञातव्यम् एतदभिप्रायेणैवाह - ' एवं चैव' इत्यादि, ' एवं चेव चउरिंदियाण वि णवगमगा भाणियव्वा' एवमेव - द्वीन्द्रियादिवदेव चरिन्द्रयाणामपि नव गमका यथायर्थ भणितव्याः । त्रीन्द्रियाद्यपेक्षया यद्वैलक्षण्यं तदाह-'नवरं इत्यादि 'एएस चेत्र ठाणेस णाणता भाणियन्त्रा' नवरमेतेषु वक्ष्यमाणस्थानेषु अवगाहनादिविषयेषु नानात्वानि -भेदाः भणितव्यानि तथाहि - 'सरीरे गाइणा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं' शरीरावगाहना जघन्येनाङ्गुलस्यासंख्येयभागम् जयन्यतोऽङ्गुला संख्येयभागप्रमाणा शरीरावगाहना भवतीति भावः । 'उक्को सेगं चत्तारि गाउयाई' उत्कर्षेण दो अथवा सीन उत्पन्न होते है और उत्कृष्ट से संख्यात अथवा असंख्यात उत्पन्न होते हैं । इस प्रकार से सब कथन दीन्द्रियादि के जैसा ही यहाँ पर जानना चाहिये, इस अभिप्राय को लेकर सूत्रकारने 'एवं चेव चउरिंदियाण वि णव गमगा भाणियव्या' ऐसा सूत्रपाठ कहा है, बेड़न्द्रिय जीवों के जैसे ही नौ गमक चौइन्द्रिय जीवों के भी जानना चाहिये, परन्तु तेइन्द्रिय जीवों के नौ गमकों की अपेक्षा चौइन्द्रिय जीवों के नौ गमकों में जो वैलक्षण्य है उसे सूत्रकार 'नवरं एएस चेव ठाणेसु णाणत्ता भाणियव्वा' इस सूत्रपाठ द्वारा प्रकट कर रहे हैं - इसके द्वारा उन्होंने यह समझाया है कि 'सरीरोगाहणा जहन्नेणं अंगुलरस असंखेज्जइभागं' यहां शरीरावगाहना जघन्य से अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण है और 'उक्कोसेणं चत्तारि गाउयाई' उत्कृष्ट से चार એક અથવા બે અથવા ત્રણ ઉત્પન્ન થાય છે. અને ઉત્કૃષ્ટથી સખ્યાત અથવા સખ્યાત ઉત્પન્ન થાય છે. આ રીતે તમામ કથન એ ઈંદ્રિયાદિકાની કથનની नेमन मडियां पशु समन्न्वु, या आशयथी सूत्रारे 'एवं चेव चढरिं दियाण वि णव गमगा भाणियव्वा' मे प्रभा सूत्रपाठ उद्योछे त्राय द्रियवाजा છાવે!ની જેમજ ચાર ઈંદ્રિયવાળા જીવાના નવ ગમ સમજવા. પરંતુ ત્રણ ઇન્દ્રિયવાળા જીવાના નવ ગમા કરતાં ચાર ઇન્દ્રિયવાળા જીવાના નવ ગમેામાં नेहा यागु छे, ते मतावतां सूत्रभरे 'णवर' एएसु चेव ठाणेसु णाणता भाणियव्वा' मा सूत्रपाठे द्वारा प्रगट यु छे, म अथनथी तेथेोगे समन्लन्यु छे है- 'सरीरोगाहणा जहणणं अंगुलरस असंखेज्जइभाग" अडीयां शरीरनी भावगार्डेना अधन्यथी गणना असं ध्यातमां लोग प्रभाशुनी छे भने 'उक्कोसेणं चत्तारि गाउयाई' Gष्टथी यार जाउ प्रभावाजी थे. 'ठिई जहन्नेणं अतो
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫