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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श. २० उ० ८ सू. २ कालिकश्रुतस्य विच्छेदिनि० ७७ इएणं उसमस अरहओ कोसलियस्त जिणपरियार' यावत्कः खल्ल ऋषभस्याईतः कौशलिकस्य-कोशलदेशोद्भवस्य जिनपर्यायः केवलिपर्याय: स च वर्षसहस्रन्यून पूर्वलक्षम् 'एवइयाइं संखेन्नाई एतावस्कानि संख्यातानि वर्षाणि 'आगमेस्साणं' आगामिष्यतां तीर्थंकराणाम् मध्यात् चरिमतित्थयरस्स 'चरमतीर्थकरस्य, 'तित्थे अणुसज्जिस्सा' वीर्थम् अनुपज्जिष्यति अनागतान्तिमतीर्थकरस्य तीर्थ वर्ष पहस्र-यूनं पूर्वलक्षं स्थास्यतीत्युत्तरम् । तीर्थप्रस्तावादेव इदमध्याह-'तित्थं भंते ! नित्यं तित्थयरे तित्थं' तीर्थ भदन्त । तीय तीर्थङ्करो वा तीर्थम् हे भदन्त ! तीर्थ चतुर्विधसं रूपं तीर्थम्-तीर्थशब्दवाच्यम् अथवा तीर्थंकरः-तीर्थशब्दवाच्य इति प्रश्नः । भगवानाह-'गोयमा' इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा ! जायइएणं उसभस्स अरहओ कोसलियस्त जिगपरियाए.' हे गौतम ! कोशल देशोद्भव ऋषभ अरिहन्त की केवलिपर्याय जितने कालतक की है-अर्थात् कोशल देशोद्भव ऋषभ अरिहन्त की केवलिपर्याय एकहजार वर्ष कम एकलाख पूर्व की है इतने ही संख्यात वर्षों तक आगामी तीर्थंकरों में के अन्तिम तीर्थकर का तीर्थ रहेगा अर्थात् अनागत अन्तिम तीर्थ कर का तीर्थ एक हजार वर्षकम एक लाख पूर्व तक रहेगा चौरासी लाख वर्ष का एक पूवाङ्ग होता है और ८४ लाख पूर्वाङ्ग का एक पूर्व होता है ऐसे एक लाख पूर्व तक उनका तीर्य रहेगा, इस एक लाख पूर्व में एक हजार वर्ष कम जो किये गये हैं वे छद्मस्थावस्था के किये गये हैं। तीर्थ के प्रकरण से अब गौतमत्वामी प्रभु से ऐसा भी पूछते हैं-'तित्थं भंते! तिथं तित्थयरे तित्थं हे भदन्त ! तीर्थ-चतुर्विध संघरूपतीर्थ तीर्थ शब्द का वाच्य है ? या तीर्थकर तीर्थ शब्द का वाच्य है ? उत्तर में प्रभु कहते हेश १ मा प्रनाउत्तरमा प्रभु छ है-'गोयमा! जावइएणं उसमस्त अरह मो कोसलियस्स जिणपरियाए०' गौतम ! अशल देशमा उत्पन्न થયેલા ત્રાષભ ભગવાનની કેવલી પર્યાય જેટલા કાળ સુધીની છે- અર્થાત કેશલ દેશમાં થયેલા ઋષભ ભગવાનની કેવલપર્યાય એક હજાર વર્ષ કમ એકલાખ પૂર્વ સુધી રહેશે ૮૪ ચોર્યાશી લાખ વર્ષનું એક પૂર્વગ થાય છે. અને ૮૪ ચોર્યાશી લાખ પૂર્વાગતું એક પૂર્વ થાય છે. એવા એક લાખ પૂર્વ સુધી તેઓનું તીર્થ પ્રવતિત રહેશે. આ એક લાખ પૂર્વમાં એક હજાર વર્ષ જે કમ કહ્યા છે, તે છઘસ્થ અવસ્થા માટે કહેવામાં આવેલ છે. તીર્થના २१थी व गौतमस्वामी प्रसुने से पूछे छे है-'तित्थं भंते ! तित्थ तित्थयरे तित्थं उभगवन् तीथ-यतुविध स ३५ ताय से तायशप. વાગ્ય છે કે તીર્થકર એ તીર્થ શબ્દ વાચ્ય છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ શ્રી ભગવતી સુત્ર : ૧૪
SR No.006328
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 14 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages671
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size40 MB
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