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________________ भगवती सूत्रे " चतुर्विंशतिर्दण्डका भणितव्याः जीवराशीनां चतुर्विंशतिभेदभिन्नत्वेन सर्वत्र च दर्शन मोहनीयादारभ्य विभङ्गज्ञानविषयपर्यन्तेषु प्रत्येकस्मिन् चतुर्विंशतिश्चतुर्विंशतिर्दण्डका भणितच्या इति । 'नवरं जाणियन्त्रं जस्स जं अस्थि' नवरं ज्ञातव्यम् यस्य यदस्ति वैलक्षण्यमेतदवगन्तव्यम् - यस्य जीवस्य यत् मविज्ञानादिकमस्ति तत् तस्यैव जीवस्य सम्बन्धिनि मनिज्ञानादौ त्रिविधो बन्धो वक्तव्यो नान्यत्रेति भावः । कियत्पर्यन्तमित्याह - ' नाव वेमाणियाणं' इत्यादि, 'जाव वैमाणियाणं भंते ! जान विभंगनाणविसयस कवि बंधे पन्नत्ते' यावद्वैमानिकानां भदन्त ! यावद्विभङ्गज्ञानविषयस्य कतिविधो बन्धः प्रज्ञप्तः यावत्पदेन नारकादित्रयोविंशतिदण्डकानां संग्रहो भवति तथा च हे भदन्त ! नारकादारभ्य वैमानिकपर्यन्तजीवानाम् संबंधरूप बन्ध और मत्यज्ञान से लेकर विभंगज्ञान तक के अज्ञानों के विषय का अपने २ आधारभूत जीव के संबंधरूप बंध तीन प्रकार का कहा गया है - 'सव्वे वि एए चउव्वीस दंडगा भाणियव्वा' जीवराशि २४ दण्डकों में विभक्त हुए है इसलिये दर्शनमोहनीय से लेकर विभंज्ञानविषय पर्यन्त के द्वारों में से प्रत्येकद्वार में २४-२४ दण्डक कहना चाहिये 'नवरं जाणिधव्वं जस्स जं अस्थि' इस कथन में जिस जीव के जो मतिज्ञान आदिक है वे उसी जीव को कहना चाहिये और उन्हीं मतिज्ञान आदिकों में त्रिविध बन्ध कहना चाहिये, अन्यत्र नहीं। इसी प्रकार से यह कथन 'जाब वेमाणियाणं' यावत् वैमानिकों तक करना चाहिये यही बान 'जाव वेमाणियाणं भंते ! जाव विभंगनाणविसयस्स कवि बंधे पन्नन्ते' इस सूत्रपाठ द्वारा प्रश्न के रूप में प्रकट की गई हैं हे भदन्त ! यावत् वैमानिकों के यावत् विभंगज्ञान के विषय का बन्ध कितने प्रकार का कहा गया है ? यहाँ प्रथम यावत् शब्द से नारकादि ५४ अरनोद्यो छे. ' सव्वे वि एए चउव्वीसं दंडगा भाणियव्वा' लवराशी २४ ચાવીસ દડકામાં વહેં'ચાયેલ છે. તેથી દશન મેાહનીયથી લઈ ને વિભ’ગજ્ઞાન विषय सुधीना द्वारामांथी हरे द्वारमा २४ - २४ ६ वा ई . ' नवर' जाणियव्त्रं जस्स जं अस्थि' मा अनमां ने भुवने ने भतिज्ञान विगेरे हे, તે તેજ જીમને કહેવા જોઈએ. અને તેજ મતિજ્ઞાન વિગેરેમાં ત્રણ પ્રકારના 'ધ કહેવા જોઇએ. ખીજે નહીં એજ રીતે આ उथन 'जाव वेमाणियाणं' થાવત્ વૈમાનિકા સુધીમાં સમજી લેવું એજ વાત जाव वेमाणियाणं भंते ! जाव विभंगनाणविसयरस कइविहे बंधे पण्णत्ते' मा सूत्रपाठ द्वारा अश्न ३५थी પ્રગટ કરેલ છે. હે ભગવન્ યાવત્ વૈમાનિકાના યાવત્ વિભ’ગજ્ઞાનના વિષ યુના મધ કેટલા પ્રકારના કહેલ છે ? અહિયાં પડેલા યાવપદથી તારક 6 શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૪
SR No.006328
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 14 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages671
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size40 MB
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