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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० २० उ. ७ सू० १ बन्धस्वरूपनिरूपणम्
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पन्नते' एवमाभिनिबोधिकज्ञानविषयस्य भदन्त ! कतिविधो बन्धः प्रज्ञप्तः, एवम् 'जात्र केवलवाणविसयस्स अन्नाणविसयस्स मइ अन्नाणवि - सरस सुअन्नाणविसयस विभंगणाणविसयस्स' यावत्, यावत्पदेन श्रवाज्ञानावधिज्ञानमनः पर्यवज्ञानविषयस्य केवलज्ञानविषयस्य मत्यज्ञानविषयस्य श्रुतज्ञानविषयस्य त्रिभङ्गज्ञानविषयस्य, एषामपि प्रश्नवाक्यं स्वयं भणितव्यम्, उत्तरमाह - 'एएसिं सन्वेसि पयाण' एतेषां सर्वेषां पदानाम् 'तिविहे बंधे पन्नते' त्रिविधो बन्धः प्रज्ञप्तः, श्रुज्ञानादारभ्य केवलज्ञानविषयपर्यन्तानां तथा मध्यज्ञानादारभ्य विभङ्गज्ञानविषयपर्यन्तानां त्रिपकारको बन्धो भवतीत्युतरं भगवतः । 'सव्वे वि एए चउन्चीसं दंडगा माणिकन्या' सर्वेऽप्येते भंते ! कवि बंधे पन्नन्ते' हे भदन्त ! आभिनियोधिकज्ञान के विषय का बंध कितने प्रकार का कहा गया है ? यहां आभिनिबोधिकज्ञान ( मतिज्ञान) के विषय का जो विवक्षित जीव के साथ सम्बन्ध है वही बंधरूप से विवक्षित हुआ है। 'जाव केवलनाणविसयस्स' मइअन्नाणविसयरस सुयअन्नाणविसयस्स विभंगणाणविसयस्स' इसी प्रकार से घावत् केवलज्ञान विषय का, मतिअज्ञान के विषय का, श्रुतअज्ञान के विषय का, विभंगज्ञान के विषय का अपने २ आधारभूत जीव के साथ संबंध रूप बन्ध कितने प्रकार का कहा गया है ? इन सब प्रश्नों के उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'एएसिं सन्वेसि पयाणं तिविहे बंधे पण्णत्ते' इन सब ज्ञानों का और उनके विषय का तथा अज्ञानों का और उनके विषय का जो अपने २ आधाररूप जीव के साथ संबंध है वह जीवप्रयोगादिबंध के भेद से तीन प्रकार का कहा गया है। तात्पर्य ऐसा है कि श्रुतज्ञान से लेकर केवलज्ञान तक के ज्ञानों के विषय का ભગવન આભિનિબેાધિકજ્ઞાન વિષયના ખાંધ કેટલા પ્રકારના કહ્યો છે? અહિયાં આભિનિષેાધિકજ્ઞાન સબંધી જીવની સાથે જે સબધ છે, તેજ બધ રૂપે બ્રહ્મણ કરાયેલ છે. 'जाब केवलनाणविसयस्स मइअन्नाणविसयम्स सुय अन्ना. विनयस विभंगणाणविसयरस' से रीते यावत् देवसज्ञान विषयमा भति અજ્ઞાનના વિષયને શ્રુતઅજ્ઞાનના વિષયને અને વિભ’ગજ્ઞાનના વિષયના પાત પેાતાના આધાર રૂપ જીવની સાથેના સંબધ રૂપ બંધ કેટલા પ્રકારના કહેલ छे? या तमाम प्रश्नोना उत्तरभां प्रभु उडे छेडे 'एएसि सव्वेसि पयार्ण तिविहे बंधे पण्णत्ते' मा तमामज्ञानानो खाने तेना विषय के पोतपोतानाઆધાર રૂપ જીવની સાથે મધ છે તે વપ્રયાગાદિ બંધના ભેદથી ત્રણ પ્રકારના કહેલ છે. કહેવાનુ તાપ એ છે કે-શ્રુતજ્ઞાનથી લઈને કેવલજ્ઞાન સુધીના જ્ઞાનાના વિષ્યના સબધરૂપ બન્ધ અને મતિઅજ્ઞાનથી લઈ ને વિભ’ગજ્ઞાન સુધીના અજ્ઞાનાના વિષયના પાતપેાતાના આધારભૂત જીવના સબ ́ધરૂપ 'ધ ત્રણુ
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શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૪