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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० २० उ. ७ सू० १ बन्धस्वरूपनिरूपणम् ५५ 9 आभिनिबोधिकज्ञानादारभ्य केवलज्ञानविषयाणां तथा मत्यज्ञानादारभ्य विभङ्गज्ञानविषयाणां कतिविधो बन्धो भवतीति प्रश्नः । भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'गोमा' हे गौतम ! 'तिविहे बंधे पन्नते' त्रिविधो बन्धः प्रज्ञप्तः, प्रकारभेदमेव दर्शयति- 'तंजहा' इति, 'तं जहा' तद्यथा - 'जीवपभोगबंधे, अणंतरबंधे, परंपरबंधे' जीवप्रयोगबन्धः, अनन्तरबन्धः, परंपरबन्धः, जीवप्रयोगानन्तरपर म्परबन्धभेदेन त्रिविधो बन्धो नारकादिवैमानिकान्तजीवानां सम्बन्धिविभङ्गज्ञानविषयान्तानां भवतीति भगवत उत्तरमिति । stafari संग्रहगाथाद्वयं दृश्यते 'जीवपओगबंधे, अनंतर परंपरे च बोद्धव्वे । पगडी उदर वेए, दंसणमोहे चरिते य || १ || ओरालियवे उव्जिय, आहारगतेयकम्मर चेव । सन्ना लेस्सा दिट्ठी णाणाणाणेसु तव्त्रिसए ॥२॥ २३ दण्डकों का संग्रह हुआ है और द्वितीय यावत्पद से आभिनिबोधिज्ञान से लेकर केवलज्ञान तक के विषयों का तथा मत्यज्ञान से लेकर श्रुतज्ञान तक के विषयों का संग्रह हुआ है सो पांच ज्ञानों का और इनके विषयों का तथा ३ अज्ञानों का और इनके विषयों का कितने प्रकार का बंध कहा गया है ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रभुने कहा है कि- 'गोयमा ! तिविहे बंधे पन्नत्ते' हे गौतम! इनका और इनके विषयों का आत्मा के साथ संबंधरूप बंध जीवप्रयोगबंध, अनन्तरबन्ध और परम्पराबन्ध के भेद से तीन प्रकार का कहा गया है । यहीं कहीं२ ये दो संग्रहगाथाएँ लिखी हुई मिलती हैं- 'जीवप्पओगबंधे' इत्यादि । तात्पर्य इन दो गाधाओं का केवल इतना ही है कि बन्ध जो तीन प्रकार का कहा गया है वह जीवप्रयोगबन्ध, अनन्तरबन्ध और परम्परा बन्ध के भेद से कहा गया है और वह ज्ञानावरणीय आदि कर्मप्रकृतियों વિગેરે ૨૩ તેવીસ દડકાના સગ્રહ થયેલ છે. અને ખીજા યાવત્ શબ્દથી આભિનિષેાધિક જ્ઞાનથી લઈને કેવળજ્ઞાન સુધીના વિષયાના તથા મતિ અજ્ઞાનથી લઈને શ્રત અજ્ઞાન સુધીના વિષયેના સગ્રહ થયા છે. તા પાંચ જ્ઞાનાના તથા તેના વિષયેાના તથા ૩ ત્રણ અજ્ઞાનાના અને તેના વિષયાના કેટલા પ્રકારના અધ કહેવામાં આવેલ છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ કહે छे - ' गोयमा ! तिविहे बंधे पण्णत्ते' हे गौतम! तेन भने तेना विषयान આત્માની સાથેના સંબંધ રૂપ અંધ છત્રપ્રયાગમધ, અનન્તરમધ અને પર'પરામ ધના ભેદથી ત્રણ પ્રકારને કહેલ છે આ સમધમાં કાઇ કાઈ स्थळे या मे संग्रहगाथा समेत्री भणे छे.' जीवप्पओगबंधे' इत्याहि मा શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૪
SR No.006328
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 14 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages671
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size40 MB
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