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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२४ उ.२ सू०१ असुरकुमारदेवस्योत्पादादिकम् ५६७ 'जहन्नेणं साइरेगा पुवकोडो' सातिरेका पूर्व कोटिः, 'दसहि वाससहस्सेहि अन्महिया' दशभिर्वर्षसहस्रैरभ्यधिका, तथा-'उकोसेणं छप्पलियोवमाई उत्कर्षेणि षट्पल्योपमानि त्रीणि असंख्यातबर्षायुस्तिर्यग्भवसंबन्धीनि, त्रीणि चासुरकुमारभवसंबन्धीनि इत्येवं षट्पल्योपमानि भवन्ति न हि देवभवावृत्तः पुनरपि असं. ख्यातवर्षायुष्केषु समुत्पद्यते इति । 'एनइयं जाव करेजना' एतावन्तं यावत् कुर्यात् एतावस्कालपर्यन्तमेव तिर्यगतो असुरकुमारगतौ च गमनागमने कुर्यादिति (२०) इति प्रथमो गमः १। अथ द्वितीयगममाह-'सो चेव' इत्यादि, 'सो चेव जहन्न. कालटिइएसु उवश्नो एस चेव वत्तव्या' स एव जघन्यकालस्थितिकेषु उपपमा, एषैव वक्तव्यता यदि सोऽसंख्यातवायुष्कसंज्ञिरश्चेन्द्रियतिर्यग्योनिको जीवर होता है, काल की अपेक्षा वह 'जहन्नेणं साइरेगा पुषकोडी, दसाह वाससहस्सेहिं अमहिया' जघन्य से दशहजार वर्ष अधिक तथा और भी कुछ अधिक एक पूर्व कोटि तक एवं 'उक्कोसेणं छप्पलिओषमाई' 'उत्कृष्ट से छह पल्यापम तक तिर्यग्गतिका और असुरकुमार गति का सेवन करता है तथा 'एवइयं जाव करेज्जा' इतने ही काल तक वह उस गति में गमनागमन करता है, यहां उत्कृष्ट से जो छह पल्योपम का कोल कहा गया है वह असंख्यात वर्ष की आयुवाले तिर्यग् भव के तीन पल्यो को और असुरकुमार के भव के ३ तीन पल्यों को लेकर कहा गया है। ऐसा यह प्रथम गम है। वित्तीय गम इस प्रकार से है-'सो चेव' इत्यादि-'सो चेव जहन्नकालटिइएसु उवषन्नो एस चेव वत्तव्यया' यदि वही असंख्यातवर्ष की ३२१॥ ३५ सय छे. जनी अपेक्षा 'जहन्नेणं साइरेगा पुत्वकोडी दमाहि पास सहस्सेहि अमहिया' धन्यथी ४ २ ११ मधि४ ये पू री सुधी भने 'उक्कोसेणं छ पलिओवमाई' Gष्टया छ पक्ष्या५म सुधा तिय"य तिनु भर असुभा२ गतिनु सेवन ४२ ७. एवइयं जाव करेज्जा' तथा टार કાળ સુધી તે એ ગતિમાં ગમનાગમન કરે છે. અહિંયા ઉત્કૃષ્ટથી જે પાપમને કાળ કહો છે. તે અસંખ્યાત વર્ષની આયુષ્ય વાળા તીર્થંકુ ભવના ત્રણ પલ્યોપમને અને અસુરકુમારના ભવમાં ત્રણ પાપમાને લઈને કહેવામાં આવ્યું છે. એ પ્રમાણે આ પહેલે ગમ છે. भी मनु थन ४२पामा मा छ.-'सो चेव' इत्यादि 'सो चेव जहन्नकालदिइएस उववन्नो' एस चेव वत्तव्वया' ने मे असया १५नी શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૪
SR No.006328
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 14 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages671
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size40 MB
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