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भगवतीसूत्रे 'णवरं सरीरोगाहणा जहन्नेणं रयणिपुहुत्ते' नवरम्-केवलं शरीरावगाहना जघन्यतो रलिपृथक्त्वम्-द्विहस्तादारभ्य नवहस्तपर्यन्तम् एतावता इदं निश्चीयते यत् द्वितीयनारकथिव्यां द्विहस्तपमाणशरीरावगाहनातो हीनतरावगाहनावन्तो नारकतया नैर उस्पयन्ते इति, 'उक्कोसेण वि स्यणिपुहुत्तं' उत्कर्षेणापि रस्निपृथक्त्वं शरीरावगाहना तथा च जघन्योत्कृष्टाभ्यामुभाभ्यामपि शरीरावगाहना रत्निपृथक्त्वमेव द्वितीयनारकोत्पित्सूनामिति । 'ठिई जहन्नेणं वास. पहत्त' स्थितिजघन्येन वर्ष पृथक्त्वमेव द्वितीयनारकजीवानां स्थितिजघन्येन वर्ष पृथकावं भवति 'उकोसेण वि वासपुहुत्तं' उष्कर्षेणाऽपि वर्ष पृथक्त्वमेव । स्थिति द्वितीयनारकजीवानामिति । एवं अणुबंधोऽवि एवम्-स्थितिवदेव अनुबन्धोऽपि जघन्येन वर्षपृथक्त्वम् उत्कर्षेणाऽपि वर्ष पृथक्त्वम् द्विवर्षादारभ्य ना. उसे 'नवरं' इत्यादि सूत्रपाठ द्वारा प्रदर्शित करने के अभिपाय से खत्रकार कहते हैं कि-यहां पर शरीरावगाहना जघन्य से रनि पृथक्त्व की है-दो हाथ से लेकर नौ हाथ तक की है-इससे यह निश्चित होता है कि द्वितीय नारक पृथिवी में हि हस्त प्रमाण की अवगाहना से हीनतर अवगाहनावाले उत्पन्न नहीं होते हैं। तथा उत्कृष्ट से भी शरीर की अवगाहना यहां रत्नि पृथक्त्व की है, इस प्रकार यहां दितीय नरक में जघन्य और उत्कृष्ट दोनों रूप से शरीर की अवगाहना रस्निपृथक्त्व की ही है, तथा-'ठिई जहन्नेणं वासपुहत्तं' स्थिति जघन्य से वर्ष पृथ. क्त्व की है और 'उक्कोसेण वि वासपुहुत्तं 'उत्कृष्ट से भी वर्ष पृथक्त्व की है, इसी प्रकार से द्वितीय नरक में उत्पन्न होने वाले मनुष्यों का 'एवं अणुबंधोवि' इसी प्रकार अनुबन्ध भी जघन्य और उत्कृष्ट से वर्ष ते मतपतi सूत्र४२ “नवरं" त्या सूत्र ५४४ छ त सूत्र છે કે–અહિયાં શરીરની અવગાહના જઘન્યથી ર«િ પૃથફત્વની છે. એટલે કે બે હાથથી લઇને નવ હાથ સુધીની છે. આનાથી એ નિશ્ચય થાય છે કેબીજી નારક પૃથ્વીમાં બે હસ્ત પ્રમાણની અવગાહનાથી હીનતર અવગાહના વાળા ઉત્પન્ન થતા નથી. તથા ઉત્કૃષ્ટથી પણ શરીરની અવગાહન અહિયાં રત્નિ પૃથફત્વની છે એ રીતે અહિયાં બીજા નરકમાં જઘન્ય અને ઉત્કૃષ્ટ બને ३५ शरीरनी 2440 लि पृथपनी ४७ छे. तथा 'टिई जहन्नेणं वासपुहुत्त स्थिति धन्यथा १५ पृथत्वनी छे. 'उकोसेण वि वास पुहुत्तं' टथी પણ વર્ષ પૃથકૃત્વની છે. એવી જ રીતે બીજા નરકમાં ઉત્પન્ન થનારા મનુષ્યને 'एवं अणुबंधोवि' मनुध ५९५ धन्य मने थी पृथतना छे 'सेस
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૪