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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२४ उ.१ सू०७ मनुष्येभ्यो नारकाणामुत्पत्यादिकम् ५०९ 'सो चेव जहन्नकालटिइएसु उजवन्नो' स एव जघन्यकालस्थितिका पर्याप्तसंख्ये. यवर्षायुष्कसंशिमनुष्यो यदि जघन्यकालस्थितिकेषु नैरयिकेषत्पद्येत तदा 'एस एव वत्तव्यया चउत्थगमसरिसा णेयवा' एषै। वक्तव्यता चतुर्थगमसदृश्येव नेतव्या, तथाहि जघन्यकालस्थितिको मनुष्यो जघन्यकालस्थितिकेषु यदि उत्पद्यते तदा जघन्येन उत्कृष्टेनाऽपि दशवर्ष सहस्रस्थितिकेषु मनुष्यो जघन्यकालस्थिति केषु उत्पद्येत, ते जीवा एकसमयेन तत्र नारकावासे रत्नममायां कियन्त उत्पधन्ते इति प्रश्नस्य जघन्येन एको वा द्वौ वा त्रयो वा उत्कृष्टतः संख्येया उत्पद्यन्ते इत्युत्तरम् । संहननानि षडपि भवन्ति एतेषां नरकयायिनां जीवानाम् । शरीराव___'सो चेव जहन्नकालटिइएसु उवचनो' वही जघन्य काल की स्थिति वाला पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयुवाला संज्ञी मनुष्य यदि जघन्य काल की स्थितिवाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है तो 'एस एव वत्तव्यया च उत्थगमसरिसा णेयवा' यहाँ पर भी चतुर्थ गम जैसी ही बक्तव्यता कह लेनी चाहिये, जैसे-जघन्य काल की स्थिति धाला मनुष्य जघन्य काल की स्थितियाले नैरयिकों में यदि उत्पन्न होने के योग्य है तो वह जघन्य से दश हजार वर्ष की स्थितिवाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है और उत्कृष्ट से भी दस हजारवर्ष की स्थितिवाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है, अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-हे भदन्त ! ऐसे जीव वहां नरकावास में रत्नप्रभा में एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? तो इस प्रश्न के समाधान में प्रभु कहते हैं-हे गौतम! एक समय में वहां जघन्य से एक अथवा दो अथवा तीन उत्पन्न होते हैं और उत्कृष्ट से संख्यात उत्पन्न होते हैं इन नरक___ 'सो चेव जहन्नकाल दिइएसु उववन्नो' धन्य जनी स्थितिवाणी भने પર્યાપ્ત સંખ્યાત વર્ષની આયુષ્યવાળે સંજ્ઞી મનુષ્ય જે જઘન્ય કાળની સ્થિતિ पामा नै२थिमा पन्त थाय तो 'एस एव वत्तव्वया च उत्थगमसरिसा णेयव्वा' અહિયાં પણ ચેથા ગમ પ્રમાણે જ કથન કહેવું જોઈએ જેમકે-જઘન્ય કાળની સ્થિતિવાળા નૈરયિકમાં જે ઉત્પન્ન થવાને ગ્યા છે, તે તે જઘન્યથી દસ હજાર વર્ષની સ્થિતિવાળા નરયિકમાં ઉત્પન્ન થાય છે. અથવા ઉત્કૃષ્ટથી સાગરોપમની સ્થિતિવાળા નૈરયિકમાં ઉત્પન્ન થાય છે. હવે ગૌતમસ્વામી પ્રભુને એવું પૂછે છે કે-હે ભગવન એવા છે ત્યાં નારકાવાસમાં રત્નપ્રભા પૃથ્વીમાં એક સમયમાં કેટલા ઉત્પન્ન થાય છે? હે ગૌતમ ! એક સમયમાં ત્યાં જઘન્યથી એક અથવા બે અથવા ત્રણે ઉત્પન્ન થાય છે. અને ઉત્કૃષ્ટથી શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૪
SR No.006328
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 14 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages671
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size40 MB
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