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________________ ४०४ भगवतीसूत्रे हणाई' इति । 'कालादेसेणं' कालादेशेन-काळमकरेण कालत इत्यर्थः 'जहन्नेण' जघन्येन 'पुषकोडी दसहिं वाससहस्सेहि अब्भहिया' पूर्वकोटिः दशभिर्वर्षसहस्रै रभ्यधिका दश सहस्रवर्षाधिकपूर्वकोटिः। 'उक्कोसेण वि' उत्कर्षेणापि 'पुनकोडो दसवाससहस्सेहिं अब्भहिया' पूर्वकोटिः दशवर्ष सहरभ्यधिका, 'एवइयं कालं सेवेज्जा' एतावन्तं कालम्-एतावत्कालपर्यन्तं गत्यागती-गमनागमने कुर्यात् इति, 'उकोसकालहियपज्जत्तअसन्निपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते!' उत्कर्षकालस्थितिकपर्याप्ता संक्षिपञ्चन्द्रियतिर्यग्योनिकः खलु भदन्त ! 'जे भविए' यो भव्यः-भवितु योग्यः 'उक्कोसकालट्ठिइएसु' उत्कर्षकालस्थिति केषु 'रयणप्पभापुढविनेरइएसु' स खलु भदन्त ! उत्कर्ष कालस्थितिकः रत्नप्रभा पृथिवीनैरयि केषु उत्पत्तुं योग्यः पर्याप्तासंज्ञिपश्चेन्द्रियतिर्थयोनिकः 'केवश्यकालहिइएम' के ग्रहण तक वह उसगति का सेवन करता है और 'कालादेसेणं' काल की अपेक्षा वह' 'जहन्नेणं' जघन्य से पुव्वकोडी द्सहिं वाससहस्सेहिं अमहिया 'दश हजार वर्ष अधिक एक कोटि पूर्व तक और 'उक्कोसेणं वि' उत्कृष्ट से भी दश हजार वर्ष अधिक एक कोटि पूर्व तक वह गमनागम करता है। ___अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'उक्कोसकालट्ठियपज्जसअसन्निपंचिंदियतिरिक्खजोणिए गं भंते' जे भविए उक्कासकाल. ट्टिहरसु रयणप्पमा पुढवि० हे भदन्त ! उस्कृष्ट काल की स्थिति वाला पर्याप्त असंज्ञी पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिक जीव जो उत्कृष्ट काल की स्थितिथाले रत्न प्रभा पृथिवी के नैरयिकों में उत्पन्न होने के योग्य है 'से णं भंते !' ऐसा वह जीव हे भदन्त 'केवयकालहिइएसु उववज्जेज्जा' सवाना अy सुधी ते गतिर्नु सेवन ४२ . मने 'कालादेसेणं' पनी अपेक्षा त 'जहन्नेणं' धन्यथा 'पुब्धकोडि दसहिं वाससहरसेहि अमहिया' ४२ १२ ११ मधि से पूर्व टि सुधी म२ 'उक्कोसेणं वि' थी પણ દસ હજાર વર્ષ અધિક એક પૂર્વકેટિ સુધી તે ગમનાગમન કરે છે. वे गौतमस्वामी प्रभुने से पूछे छे -'उक्कोसकालट्टिइय पज्जत्तअसन्निपंचि दियतिरिक्खनोणिए णं भते ! जे भविए उक्कोसकालट्ठिइएसु रयण. प्पभापुढवि०' हे मशवन्ट नी स्थितिवा। पर्याप्त ससशी ययન્દ્રિય તિર્યંચનીવાળે જીવ કે જે ઉત્કૃષ્ટ કાળની સ્થિતિવાળા રત્નપ્રભા Yीना नयिमi Sun 241 योग्य छ, ‘से गं भते !' मे ते ०१ मन 'केवइयकाल द्विहएसु उववज्जेज्जा' मा अनी स्थिति नैयि. શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૪
SR No.006328
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 14 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages671
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size40 MB
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