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________________ " प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१८ ३०६ सू०१ सचेतनामचेतनानामनेकस्वभावत्वम् ६५ मतेन 'पंचवन्ने' पञ्चवर्गः द्रवगुडोऽपि कृष्णादिपञ्चवर्णोपेत इति निश्चयनयस्य मतम् 'दुर्ग' द्विगन्धः द्वौ सुरभिदुरभिगन्धौ तत्र द्रवगुडे वर्त्तते इत्यर्थः, 'अट्ठफासे पन्नत्ते' लघुगुरुकाद्यष्टस्पर्शः प्रज्ञप्तः द्रवगुडे । 'भमरे णं भंते ! कइवन्ने पुच्छा' भ्रमरः खलु भदन्त ! कतिवर्ण इति पृच्छा प्रश्नः भ्रमरः तन्नामकश्चतुरिन्द्रियविशेषः कविवर्णः कतिवर्णवान् कविरसः - कविरसवान् कतिगन्धः - कविगन्धवान्, कतिस्पर्शः - कतिस्पर्शत्रांश्चेति प्रश्नः । भगवानाह - 'गोयमा ' इत्यादि । 'गोयमा !" हे गौतम! 'एत्थ णं दो नया भवति' अत्र खलु द्वौ नयौ भवतः, 'तं जहा निच्छइयनए य चावहारियनए य' तद्यथा नैश्वयिकनयश्व व्यावहारिकनयश्व 'वावहारियनयस्स कालए भमरे' व्यावहारिकनयस्य मतेन कालकः कृष्णः भ्रमरः व्यवहारयाश्रयणे तु कृष्णो भ्रमरः भ्रमरकार्ण्यस्य सर्वाविसंवादात् 'नेच्छइनयस्स नैश्चकिनय के मतानुसार उसमें पांच वर्ण हैं । 'दुगंधे' सुरभिदुरभिदो गंध हैं। (पंचर से पांच रस और 'अडफासे पन्नन्ते' आठ स्पर्श हैं। अर्थात् द्रव्यगुड में निश्चयनय की अपेक्षा से ये सब हैं। अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं । 'भमरे णं भंते! कइवन्ने०' हे भदन्त ! जो भ्रमर है वह कितने वर्णवाला है। ऐसा यह प्रश्न है भ्रमर चौइन्द्रियोंवाला होता है चक्षुत्राणरस स्पर्श ये इन्द्रियाँ होती है यह कितने वर्णोंवाला कितने रसोंवाला कितने गंधगुणवाला और कितने स्पर्शो वाला होता है ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु कहते हैं । 'गोयमा' हे गौतम ! इस विषय के विचार करनेवाले यहां दो नय हैं। एक नैश्वविकनय और दुसरा व्यावहारिक नय । व्यावहारिकनय हमें यह कहता है कि भ्रमर काला है क्योंकि भ्रमरकाला है, इस सम्बन्ध में किसी को भी विसं M वर्षा छे. “दुगंधे" सुरली भने हुरलि-सुगंध भने दुर्गध मे मे गध छे भने ‘पंचरसे' यांय २स छे. ‘अट्ठफ से पण्णत्ते' मा स्पर्श छे. अर्थात सीसा गोणभां (અરતા ગેાળમાં) નિશ્ચય નયના મત પ્રમાણે આ પાંચ વધુ, પાંચ રસ છે. હવે गौतम स्वामी प्रभुने अवु पूछे छे है-भ्रमरे णं भंते । कइवन्ने० " हे भगवन् જે ભ્રમર-ભમરા છે. તે કેટલા વણુ વાળે છે? ભ્રમર ચૌઈંદ્રિયવાળા હોય છે, यक्षु, प्राणु, रस, मने स्पर्श से यार दियो तेने छे. ते डेंटला वशेवाणी, કેટલા રસેાવાળા કેટલા ગંધ ગુણવાળા અને કેટલા સ્પર્શીવાળે! હાય છે? આ प्रश्न उत्तर ३ अलु उडे - " गोयमा !" हे गौतम! या विषयभां વિચાર કરવા નિશ્ચયનય, વ્યવહારનય, એ એ નયેાના આશ્રય લેવામાં આવે છે. વ્યવહારનય, આપણને એ બતાવે છે કે-ભમરા કાળા ડાય છે. ભ્રમર કાળા હાય છે, એ સબંધમાં ફાઇને પણ વિસ'વાદ હોતા નથી. તથા નૈશ્ચયિક भ० ९ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩
SR No.006327
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages970
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size58 MB
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