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________________ ૧૭૨ भगवतीसूत्रे इत्येवं पञ्चमो भङ्गो भवति ५। 'सिय कालए य हालिद्दए य सुकिल्लए य' स्यात् कालश्च पीतश्च शुक्लश्च त्रिप्रदेशिकस्कन्धस्यैकः प्रदेशः कालो द्वितीयः पीत स्तृतीयः शुक्ल इत्येवं रूपेण षष्ठो भङ्गो भवति६। 'सिय नीलए य लोहियए य हालिद्दए य' स्यात् नीलश्च लोहितश्व पीतश्च, त्रिप्रदेशिकस्कन्धस्यैकः प्रदेशो नीलो द्वितीयो लोहित स्तृस्यः पीतः, इत्येवं रूपेण सप्तमो भङ्गो भवति । 'सिय नीलए य लोहियए य सुकिल्लए य' स्यात् नीलश्व लोहितश्च शुक्लश्च यदा त्रिप्रदेशिकस्कन्धस्यैकपदेशो नीलो द्वितीयः प्रदेशो लोहित स्तृतीयः प्रदेशः शुक्लस्तदष्टमो भङ्गो भवति ८ । 'सिय नीलए य हालिदए य सुकिल्लए य' स्यात् नीलश्च पीतश्च प्रदेश शुक्ल भी हो सकता है छठा भंग-सिय कालए य हालिहए य, सुक्किल्लए य' ऐसा है इसमें उस त्रिप्रदेशिक स्कन्ध का एक प्रदेश काला भी हो सकता है दूसरा प्रदेश पीला भी हो सकता है और तीसरा प्रदेश शुक्ल भी हो सकता है सातवां भंग-सिय नीलए लोहिय य हालिहए य' ऐसा है इसमें उस त्रिप्रदेशिक स्कन्ध का प्रथम प्रदेश कृष्ण के स्थान पर नीला भी हो सकता है दूसरा लाल भी हो सकता है और तीसरा प्रदेश पीला भी हो सकता है आठवां भंग-'सिय नीलए य, लोहि यए य, सुक्किल्लए य' ऐसा है इस में उस त्रिप्रदेशिक स्कन्ध का प्रथम प्रदेश नील भी हो सकता है, दूसरा प्रदेश लाल भी हो सकता है और तीसरा प्रदेश शुक्ल भी हो सकता है ८ नौवा भग-'सिय नीलए य, हालिद्दए य, सुकिल्लए य, ऐसा है इस में उस त्रिप्रदेशिक स्कन्ध का भनेत्री प्रदेश श्वेतपणे ५५ ड श छ.५ ७४ो 1-'म्रिय काल एय हालिहए य सुकिल्लए य म प्रमाणे भने छ. म म त प्रशीવાળા સ્કંધને એક દેશ કાળા વર્ણવાળો હોય છે. અને બીજો પ્રદેશ પીળા વર્ણવાળ પણ હોઈ શકે છે. અને ત્રીજે પ્રદેશ કવેત વર્ણવાળ પણ બની श छ.६ सातमी म २ प्रमाणे भने छ.-'सिय नीलए य लोहियए य हालिहए य' मामा से ऋण प्रशवाय २४ धनी प्रथम प्रदेश नी वाले પણ હોઈ શકે છે અને બીજે પ્રદેશ લાલ પણ હોઈ શકે છે. અને ત્રીજો प्रदेश भाग ५५ ७ .७ मे 1-सिय नीलएय, लोहियएय, सुकिल्लए य, मा प्रमाणे मी मने छ. तेमां त्रय प्रशवाणा સ્કંધને પ્રથમ પ્રદેશ નીલ વર્ણવાળ પણ હાઇ શકે છે. બીજે પ્રદેશ લાલ વર્ણવાળે પણ હોઈ શકે છે. અને ત્રીજે પ્રદેશ ત પણ હોઈ શકે છે.૮, ३ नवम! ल मतावामां आवे छे. 'सिय लोहियएय, हालिइएय, मुक्कि શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩
SR No.006327
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages970
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size58 MB
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