SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 578
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५६४ भगवतीसूत्रे द्विवर्ण:-वर्णद्वयवान् तदा एकः प्रदेशः कृष्णः अपरस्तु कृष्णातिरिक्तो नीलादिः, 'सिय कालए य सिय नीलए य' स्यात् कृष्णश्च स्यात् नीलश्च, द्विकसंयोगे दशभङ्गा त्रिप्रदेशिकस्कन्धे कथितास्तेषां प्रत्येकस्य त्रयो भङ्गाः कर्तव्याः तत्र प्रथम भों स्यात् कृष्णश्च स्यात् नीलच, अत्र नीलादं कृष्णेतरसफलरूपस्य परिचायकम् १ 'सिय कालए य नीलया य' स्यात् कृष्णश्च नीली चेति द्वतीयो भङ्गः२। 'सिय कालगाय नीलए य' स्यात् कालकौ च नीलश्चेति तृतीयो भङ्गः ३ । द्विवर्ण 'जइ दुवन्ने सिय कालए सिय नीलए य' यदि वह त्रिप्रदेशी स्कन्ध दो वर्णों वाला है तो इस दो वर्णों वाले होने के सामान्य कथन में इस प्रकार से वह दो वर्णों वाला हो सकता है-एक प्रदेश उसका काला हो सकता है और दूसरे दोनों प्रदेश उसके कृष्णवर्ण से अतिरिक्त नीलादि वर्ण वाले हो सकते हैं यहां 'सिय नीलए य 'पाठ में दोनों प्रदेशों को एक रूप से विवक्षित किया गया है द्विक संयोग में जो दश भंग द्विपदेशिक स्कन्ध के प्रकट किये गये हैं उन्हीं दस मंगों में से यहां एक भंग के ३-३ भंग और होते हैं इस प्रकार यहां द्विकसंयोगी भंग कुल ३० हो जाते हैं जो इस प्रकार से हैं-'सिय कालए य सिय नीलए य' यह प्रथम भंग है इस प्रथम भंग में प्रथम अंश कदाचित् काला भी हो सकता है और द्वितीयांश कदाचित् नीलादि रूपवाला भी हो सकता है-यहाँ नील पद कृष्ण से इतर सकलरूप का परिचायक है प्रथम भङ्ग का द्वितीय अवान्तरभंग-'सिय कालए य नीलए य' यह है ३५थी परिणभी श छे. 'जइ दुवण्णे सिय कालए सिय नीलए य' नेते त्रय પ્રદેશવાળ સ્કંધ બે વર્ણવાળા હોય તે તે બે વર્ણવાળા હેવાના સામાન્ય કથનમાં આ રીતે તે બે વર્ણવાળો હોઈ શકે છે.–તેને એક પ્રદેશ કાળો હોઈ શકે છે. અને બીજા બે પ્રદેશ કાળા વર્ણથી જુદા નીલાદિ વર્ણવાળા डा छे. मलियां 'सिय नीलए य' । पामा भन्ने प्रशाने थे ३५थी વિવક્ષિત કર્યા છે. દ્વિક સંયોગમાં જે દસ અંગે ત્રણ પ્રદેશી સ્કંધના બતા વ્યા છે, તેજ દસ ભેગમાંથી અહિયાં એક ભંગના ત્રણ ત્રણ ભાગે બીજા થાય છે. એ રીતે અહિયાં દ્વિક સંયેગી કુલ ભંગ ૩૦ ત્રીસ અને छ. २ मा प्रमाणे छे. 'सिय कालए य सिय नीलए य' मा पसी संग છે. આ પહેલા ભંગમાં પ્રથમ અંશ કદાચિત્ કાળે પણ હોઈ શકે છે અને બીજો અંશ કદાચિત્ નીલ વર્ણવાળે પણ હોઈ શકે છે. અહિયાં નીલ પદ કાળાથી બીજુ સકલ રૂપને બતાવવાવાળું છે. પહેલા ભંગના બીજા અવાન્તર 1 'सिय कालए य नीलए य' मा प्रमाणे छे. अनेत्री अन्तरासिय શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩
SR No.006327
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages970
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size58 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy