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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२० उ०२ सू०२ धर्मास्तिकायादिनामेकार्थकनामनि०५१५ 'अंबरसेइ वा११' अम्बरसमिति वा-अम्बा-जलम्-जलरूपो रसो यस्माद् भवति तदम्बरसमिति निर्वचनबलादिति ११, 'छिड्डेइ वा१२' छिद्रमिति वा-छिद्रः छेदनस्यास्तित्वात् छिद्रमिति निरुक्तिवलादेव १२, 'झुसिरेइ वा१३' शुषिरमिति वा झुसेः शोषस्य दाना-पोषणक्रियासहायकत्वात् मुषिरमिति,१३ 'मग्गेइ चा१४' मार्ग इति वा पथिरूपत्वान्मार्गः,१४' 'विमुहेइ वा१५' विमुखमिति वामुखम्-आदिस्तस्या भावात् अनादित्वेन विमुखमिति, 'अदेइ वा१६' अई इति वा-अर्यते-गम्यते इति अर्दः, अथवा अन्यते-अतिक्रम्यते अनेन इति अट्ट सो इसका कारण ऐसा है कि यह माता के जैसा जल को देता है अर्थात् माता जिस प्रकार से सन्तति पैदा करती है उसी प्रकार से यह भी जल को उत्पन्न करता है और उसे प्रदान करता है 'अंबरस'११ इसका नाम है सो इसका कारण ऐसा है कि इससे जलरूपरस उत्पन्न होता है 'छि दुइ १२ वा' छिद्र ऐसा भी इसका नाम है सो इसका कारण ऐसा है कि यह छिद्ररूप है अर्थात् पोलरूप है 'जुसिरेइ वा १३' जुषिर भी इसका नाम है सो इसका कारण ऐसा है कि यह जुषिर. शोषण क्रिया में सहायक होता है 'मग्गेइ' १४ मार्ग भी इसका नाम है सो इसका कारण ऐसा है कि यह परगति में जाते जीव को मार्गरूप है क्योंकि परगति में जीव का गमन आकाश की प्रदेशपंक्ति के अनुसार ही होता है 'विमुखेइ वा१५' विमुख भी इसका नाम है सो इसको कारण ऐसा है कि इसका मुख आदि नहीं है अर्थात् अनादि है 'अदेह આપે છે. અર્થાત્ માતા જે રીતે સન્તાન ઉત્પન્ન કરે છે. તે જ રીતે આ પણ જલને ઉત્પન્ન કરે છે, અને તે આપે છે તેથી તેનું નામ “અમ્મર' એ પ્રમાણે ५९ छे.१० 'अम्बरस' मानाथी ४६ ३५ २स जत्पन्न थाय छे. तेथी तेनु नाम 'मम' प्रभारी ५५ छे.११ 'छिडेइ वा' मा छिद्र ३५-मर्थात पोटाशवाणुछ तेथी तेनु नाम 'छिद्र से प्रभाये ५ छ.१3 'झुसिरेइ वा' સુષિર એવું પણ તેનું નામ છે. તેનું કારણ એવું છે કે-આ ગુષિર નામ शप लियामा सय४ डाय छे.१3 'मग्गेइ वा' मानु नाम 'भा से પ્રમાણે પણ છે, તેનું કારણ એ છે કે અન્યગતિમાં જનારા છવને એ માગ રૂપ છે. કેમ કે પરગતિમાં જીવનું ગમન આકાશની પ્રદેશ પંક્તિ અનુસાર १य छे.१४ 'विमुखेइ वा' विभुम से प्रभातुं ५५ तेनु नाम छे. તેનું કારણ એ છે કે–તેને મુખ વિગેરે હોતા નથી. અર્થાત્ અનાદિ છે.૧૫
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩