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________________ भगवतीसूत्रे इति वा, १६ 'वियट्टेइ वा१७' व्यदों व्य? इति वा-अर्द एवं विशिष्टः अट्टएव विशिष्ट इनि व्यदों व्यहो वेति, 'आधारेइ वा१८' आधार इति वा-आ-समन्तात् पदार्थजातानां धारणात् आधार इति१८ 'वोमेइ वा १९' व्योम इति वा-विशे. षेण अवनात्-रक्षणात् व्योम इति, ‘भायणेइ वा२०' भाजनमिति-भाजनात्वा १६ अर्द अथवा अट्ट भी इसका पर्याय शब्द है सो 'अर्दयते अथवा अश्यते इति अर्दः अथवा अट्टः' इस व्युत्पत्ति के अनुसार यह जीवों के द्वारागमन क्रिया का विषय बनाया जाता है तात्पर्य यह है कि जीव इसी के आधार पर रहे हुए हैं अतः वे जो कुछ भी गमनागमनादि क्रिया करते हैं वह सब इसी में करते हैं अतः यह उनकी क्रिया का विषय कहा गया है 'वियटेइ वा १७ व्यद अथवा व्यह भी विशिष्ट क्रिया के कारण से इसका नाम हुआ है 'आधारेइ १९ वा आधार भी इसका एक नाम है सो यह अपने में समस्त पदार्थों को धारण किये हुए हैं इससे 'आधार' ऐसे नाम से भी यह कहा गया हैं 'वोमेह वा १९' 'विशेषेण अवनात्' व्योम इस व्युत्पत्ति के अनुसार यह अपने में रहे हुए पदार्थों की विशेष रूप से रक्षा करता है-अर्थात् प्रत्येक पदार्थ द्रव्य अपने उत्पाद व्यय और प्रौव्यरूप स्वभाव में इसमें सतत कायम रहते हैं यही पदार्थों का संरक्षण है इससे विपरीत एकान्त मान्यता पदार्थ का असंरक्षण है जीवादिक पदार्थ लोकाकाश में ही रहते हैं 'अद्वेइ वा' म अथ। भट्ट से प्रमाणु ५ तेनु नाम छे. तेनु ४२५ से छ -'अद्यते' 424॥ अय्यने इति अर्द्र' 4241 अट्टः मा व्युत्पत्ति प्रमाणु ! દ્વારા આ ગમનને વિષય બનાવાય છે. કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે-જીવ તેના જ આધાર પર રહેલા છે. તેથી તેઓ ગમનાગમન આવજા રૂપ જે કંઈ કિયા કરે છે, તે તમામ આકાશમાં જ કરે છે. તેથી તેઓની આ ક્રિયાના વિષય ३५ ड्युं छे.१६ ‘वियदृइ वा' व्य-4241 व्यय विशेष ध्याना २ तेनु नाम थयु छे.१७ आधारेइ वा' 'माधा२' मेयु ५५ तनु नाम छ. १२५ તે પિતાનામાં બધા જ પદાર્થોને ધારણ કરે છે. તેથી તેનું નામ “આધાર પણ उपाय छे. १८ 'वोमेइवा' विशेषेण अवनात् व्योम' मा व्युत्पत्ति प्रमाणे પિતાનામાં રહેલા પદાર્થોને વિશેષ રૂપે રક્ષા કરે છે. તેથી તેનું નામ “એમ” એ પ્રમાણે પણ કહેવાય છે. અર્થાત્ પ્રત્યેક પદાર્થ-દ્રવ્ય પોતાના ઉત્પાદ વ્યય અને પ્રૌવ્ય રૂપે સ્વભાવમાં તેમાં સતત કાયમ રહે છે. એ જ પદાર્થોનું સંરક્ષણ પાવ્યું છે. તેનાથી જુદી રીતની એકાન્ત માન્યતા પદાર્થનું અસંરક્ષણ છે. શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩
SR No.006327
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages970
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size58 MB
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