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भगवतीस्त्रे यत् तद्विहम्-विहाय इत्यर्थः यद्वा विधमिति वा विधीयते-क्रियते कार्यजातं यत्र तद्विधमिति, ७ 'वीयीइ ८ वीचिरिति-वेचनात्-वस्तुमात्रस्य विविक्तस्वभावस्थापनात् वीचिरिति८, 'विवरेइ वा९' विवरमिति वा-विगतावरणतया विवरमिति-आच्छादनरहितमिति९, 'अंबरेइ वा १०' अम्बरमिति वा अम्बा-माता तदिव जननसादृश्यात् अंबा-जलं तस्य राणात-दानात् अम्बरं निरुक्तिबलादेव १०, इसका नाम हुआ है उसका कारण 'विशेषेण हीयते त्यज्यते' इस व्युत्पत्ति के अनुसार यह एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते समय जीव द्वारा छोडा जाता है इसी कारण 'विहाय ऐसा भी नाम हुआ है अथवा-'विहेइ' इसकी संस्कृतच्छाया 'विध' ऐसी भी होती है सो 'विधीयते-क्रियते यत्र तद्विधम् ' इस व्युत्पत्ति के अनुसार समस्तकार्य इसी में जीवों द्वारा किये जाते हैं अतः इसका नाम विध ऐसा भी हो सकता है 'वीयोई' ८ वीचि ऐसा भी नाम इसका है क्योंकि अपने में रहे हुए समस्त जीवादिक द्रव्यों को यह भिन्न २ स्वभाव में रखे रहता है तात्पर्य यह कि जीवादिक समस्त पदार्थ आकाश में व्याप्त होकर रहते हैं फिर भी एक पदार्थ दूसरे पदार्थ में नहीं बदल पाता है इस प्रकार यह अपने में रखे हुए समस्त पदार्थों को भिन्न २ स्वभाव में स्थापित किये हुए है इससे इसका नाम वीचि ऐसा हुआ है । 'विवरेइ वा' यह अपना आवरण करनेवाले पदार्थ से रहित है इस कारण इसका 'विवर' ऐसा भी नाम है 'अंधरेइ १० वा ' अम्बर भी इसका नाम है हीयते त्यज्यते' से व्युत्पत्ति प्रमाणे २0 ४ स्थानेथी भी स्थाने ती વખતે જીવ દ્વારા છેડવામાં આવે છે, તેથી તેનું નામ “વિહાય” એ પ્રમાણે
युं छे. । 'विहेइ' नी त छाय'विध' मेवी ५७ थाय छे. तेथी 'विधीयते क्रियते यत्र तद्विधम्' 41 व्युत्पत्ति प्रमाणे सण या वे। मामi छे. तेथी तनुं नाम 'विध' मेनु ५४ ४ छ. 'वीयीइ' વીચિ એ પ્રમાણે પણ આનું નામ છે કેમ કે–પિતાનામાં રહેલા બધા જ જીવાદિ દ્રવ્યને આ જુદા જુદા સ્વભાવથી ધારણ કરે છે. અર્થાત જીવાદિ સઘળા પદાર્થો આકાશમાં વ્યાપ્ત થઈને રહે છે, તો પણ એક પદાર્થ બીજા પદાર્થરૂપે બદલાઈ જતા નથી, આ રીતે પોતાનામાં રાખેલા બધા જ પદાર્થોને જુદા જુદા સ્વભાવમાં સ્થાપિત કરે છે, તેથી તેનું નામ “વીચિ એવું થયું છે. 'विवरेइ वा' माशपाताने मावर-dis४५ ४२ना२ ५४ाथ विनानुं छे. तथा तनुं नाम 'वि१२' मे ५५ छ. 'अंबेरइ वा' मा भातानी मा३४१॥
શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૩