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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२० उ०२ सू०२ धर्मारितकायादिनामेकार्थकनामनि०५१३ आकाशः, तथाविधश्चासौ अस्तिकायश्च प्रदेशराशिरिति-आकाशास्तिकाय इति १। 'गगणेइ वा २' गगनमिति वा, गमनविषयत्वात् गगनं निरुक्तिवशात् २, 'नभेइवा३' नभ इति वा-नभाति-न दीप्यते छास्थानां दृष्टिविषयो न भवति इति नभो निरुक्तिबलादेवेति,३ ‘समेइ वा४' सममिति वा निम्नोन्नत भावरहितत्वात् सममिति ४, "विसमेइ वा५' विषममिति वा दुर्गमत्वाद्विषममिति,५ 'खहेइ ६ वा' खहमिति-खनने-पृथिव्याः खनने हाने च त्यागे च यद्भवति तत् खहमिति निरुक्तिवशात ६, विहेइ७ वा' विहमिति वा विशेषेण हीयते-त्यज्यते इस का नाम आकाशास्तिकाय हुआ है गगणेइ वा गमन का विषय होने के कारण इसका नाम गगन टुआ है, क्योंकि जीवादिद्रव्यों का गमन आकाश लोकाकाश में ही होता है इससे बाहर अलोकाकाश में नहीं छद्मस्थजनों की दृष्टि का यह विषय नहीं होता है इसलिये 'न भाति' इस व्युत्पत्ति के अनुसार इसका नाम नभ ऐसा हुआ है निम्नोगत भाव से रहित होता है इसलिये 'सम' इसका नाम हुआ है दुर्गम होने के कारण अर्थात् इसकी छद्मस्थजन हद्द प्राप्त नहीं कर पाते हैं इस कारण विषम ५ भी इसका नाम हुआ है 'पृथिव्याः-खन ने हाने च यद्भवति' तत् 'खहम् ' पृथिवी के खोदने पर तथा पृथिवी की हानि होने पर प्रलय होने पर भी यह सदा बना रहता है नष्ट नहीं होता है इस कारण 'खनने हाने च यद्भवति तत् खहम्' इस व्युत्पत्ति के अनुसार इसका 'खह' ६ ऐसा भी नाम हुआ है 'विहेइ ७ वा' अथवा 'विह' ऐसा जो नाम मास्तिय से प्रभाए थयु छे. 'गगणे इ वा मनना विषय ३५ હોવાથી તેનું નામ ગગન એ પ્રમાણે થયું છે કેમ કે સૂકમ દ્રવ્યનું ગમન આકાશ-લે કાકાશમાં જ થાય છે. તેનાથી જુદા અલકાકાશમાં થતું નથી. छस्थानी ष्टिमा मा विषय ३५ डरता नथी. तेथी 'नमाति' से व्युत्पत्ति પ્રમાણે તેનું નામ “રમ” એ પ્રમાણે થયું છે. આ નિષ્ણ નીચા ઉન્નત ઉંચા પણથી રહિત હોય છે. તેથી તેનું નામ “રમ” એ પ્રમાણે થયું છે. દુર્ગમ હોવાના કારણે અર્થાતુ છદ્મસ્થ જન તેની હદ પામી શકતા નથી તેથી વિષभ५ प्रभारी नु नाम थयु छ. 'पृथिव्याः खनने हाने च यद्भवति' 'तत् 'खहम्' पृथ्वीन माहवाथी तथा श्विनी लानी थाय त्यारे-प्रलय थाय त्यारे ५६५ स. २१२९ छे. नाश पामतु नथी ते ४।२ 'खनने हाने च यद्भवति तत् खहम्' 240 व्युत्पत्ति प्रमाणे तनुं 'खह' को प्रमाणेनुं नाम थयु छे. 'विहेइ वा'७ २१५१ 'विह' मेरे तनुं नाम थयुछे, तेनुं १२७ 'विशेषेण શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩
SR No.006327
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages970
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size58 MB
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