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________________ ४८६ भगवतीसत्रे 'ठिई जहा' इत्यादि, 'ठिई जहा पनवणाए' स्थितियथा प्रज्ञापनायाम्-प्रज्ञापनासूत्रे षष्ठे स्थितिपदे यथास्थितिः प्रतिपादिता तथैव इहापि ज्ञातव्या तत्र त्रीन्द्रि. याणाम् उत्कृष्टा एकोनपश्चाशत् रात्रिदिवचतुरिन्द्रियाणामुत्कृष्टा स्थितिः षण्मासा जघन्या स्थितिः उभयेषामपि अन्तर्मुहूर्तमेवेति भावः । 'सिय भंते' स्याद् भदन्त ! 'जाव चत्तारि पंच पंचिंदिया' यावत्पदेन द्वौ वा त्रयोवेत्यनयोः संग्रहः, 'एगयो' एकतः-संभूयेत्यर्थः 'साहारणं०' द्वौ वा त्रयो वा चत्वारो वा एकत्र मिलित्वा साधारणं शरीरं बध्नन्ति एकतः साधारणं शरीरं बद्ध्वा ततः पश्चात् आहरन्ति वा परिणमयन्ति वा शरीरं वा बध्नन्ति किम् ? इति प्रश्नः, भगअतिदेश से कही गई है यही बात 'ठिई जहा पन्नवणाए' इस पद द्वारा प्रकट की गई है-प्रज्ञापना सूत्र का स्थितिपद चौथा पद है सो उसमें जैसी स्थिति तेन्द्रिय और चौइन्द्रिय जीवों की प्रकट की गई है वैसी ही वह यहां पर भी कह लेनी चाहिये इनमें तेइन्द्रिय जीवों की उत्कृष्ट स्थिति ४९ रात दिन तक की है और चौइन्द्रिय जीवों की छह मास तक की है तथा जघन्य स्थिति इन दोनों की एक अन्तर्मुहूर्त की है। ___अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'सिय भंते ! जाव चत्तारि, पंच पंचिंदिया एगयओ साहारण०' हे भदन्त ! क्या यह बात संभव हो सकती है कि यावत्-दो तीन एवं चार और पांच पश्चेन्द्रिय जीव मिलकर एक शरीर का-साधारण शरीर का बन्ध करते हैं ? साधारण शरीर का बन्ध करके उसके बाद आहार करते हैं ? और आहृत पुदलों को परिणमाते हैं ? फिर विशिष्ट शरीर का बंध करते हैं ? इसके उत्तर छ. ते पात “ठिई जहा पन्नत्रणाए' 24॥ ५४थी प्राट ४२a छे. प्रज्ञानानु ૬ છઠું સ્થિતિ પદ . તેમાં તેઈદ્રિય અને ચાર ઈન્દ્રિયવાળા જીવની જેવી સ્થિતિ બતાવેલ છે. એજ રીતની સ્થિતિ અહિયાં પણ સમજી લેવી. તેમાં ત્રણ ઈદ્રિયવાળા જીવની ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ ૪૯ ઓગણપચાસ રાત દિવસ સુધીની છે. અને ચાર ઈદ્રિયવાળા ઓની સ્થિતિ છ મહિના સુધીની છે. આ બનેની જઘન્ય સ્થિતિ એક અન્તર્મુહૂર્તની છે. वे गौतम स्वामी प्रभुने मे छे छे ई-सिय भंते ! जाव चत्तारि पंचपंचिंदिया एगयो साहारणं० मापन मे पात सलवी छे हैंથાવત્ બે ત્રણ અને ચાર તથા પાંચ પંચેન્દ્રિય જીવે મળીને એક સાધારણ શરીરને બંધ કરે છે? અને સાધારણ શરીરને બંધ કહીને તે પછી આહાર કરે છે? અને આહાર કરેલા પહલેને પરિણુમાવે છે? તેના ઉત્તરમાં શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩
SR No.006327
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages970
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size58 MB
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