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समयबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. ५ उ. १ नारकीयवेदनानिरूपणम् ३३१ पृष्टो भगवान्मां प्रत्येवमाह एवं मए' इत्यादि ।
मूलम् - एवं भए पुट्टे महाणुभावे इणमोऽब्बवी कोसवे आपन्ने। पवेदैइस्सं दुर्मदुग्गं आदीणियं दुक्कडियं पुरस्था ॥२॥ छाया - एवं मया पृष्टो महानुभाव इदमब्रवीत्काश्यप आशुप्रज्ञः । वेदयिष्यामि दुःखमर्थदुर्गमादीनिकं दृष्टकृतिकं पुरस्तात् ||२ || अन्वयार्थ :- ( एवं ) एवमनेन प्रकारेण (मए) मया (पुढे) पृष्टः सन (महानुवावे) महानुभावः- विस्तृतमाहात्म्यवान ( कासवे ) काश्यपः- काश्यपगोत्रोत्पन्नो महावीरः
प्रश्न करने पर भगवान् ने मुझे इस प्रकार कहा - ' एवं मए' इत्यादि । शब्दार्थ - ' एवं - एवम्' इस प्रकार 'मए-मया' मेरे द्वारा 'पुढे - पृष्ट:' पूछे हुए 'महाणुभावे- महानुभावः' विस्तृत महात्म्य वाले 'कासवेकाश्यपः काश्यपगोत्र में उत्पन्न हुए 'आपन्ने - आशुप्रज्ञः' सब वस्तु मैं सदा उपयोग रखने वाले भगवान् वर्द्धमान् महावीर स्वामी ने 'इणमोsवी - इदमब्रवीत्' इस प्रकार कहा है कि 'दुहमदुग्गं दुःखमर्थदुर्गम्' नरक दुःखदायी है एवं असर्वत्र जनों से अज्ञेय है 'आदीणियंआदीनिकम्' वह अत्यन्त दीन जीवों का निवास स्थान है 'दुक्कडियेदुष्कृतिकं' उसमें पापीजीव निवास करते हैं 'पुरस्था - पुरस्तात् यह आगे 'पवेदस्सं -प्रवेदयिष्यामि' हम कहे गये हैं ॥२॥
अन्वयार्थ - इस प्रकार मेरे प्रश्न करने पर महानुभाव अर्थात् विशाल महिमा से मण्डित काश्यप गोत्र में उत्पन्न सदा सब में उपयोगवान् भारा ते प्रश्नन प्रमुखे मा प्रमाणे नवा माग्यो त 'एवं मए' इत्याहि
शब्दार्थ –' एवं - एवम्' या रीते 'मए-मया' भाराथी 'पुट्ठे- पृष्टः' पूछायेला 'महाणुभावे - महानुभावः' मोटा महात्म्यवाजा 'कासवे - काश्यपः ' अश्यय गोत्रमां उत्पन्न थयेला 'आपन्ने - आशुप्रज्ञः' अधीन वस्तुमा सही उपयोग राभवावाजा लगवान् वर्धमान महावीर स्वाभीये 'इणमोऽब्दवी - इदमब्रवीत् ' भावी रीते ऽह्यु ं छे डें- 'दुहमदृदुगं - दुःखमर्थदुर्गम्' न२४ दुःसहायि छे तेस सर्वज्ञननो द्वारा न लागी शकाय तेवु छे, 'आदीणियं - आदीनि कम्' ते रमत्यंत हीन शोवा बोधेनु' निवासस्थान है, 'दुकडियं - दुष्कृतिकम्' तेमां पाथी भवे। निवास रैछे. 'पुरत्या- पुरस्तात्' से बात हुवे पछी मागण 'पवेदश्स - प्रवेदयिष्यामि' हु ४डी ॥२॥
सूत्रार्थ – मड्डानुलाव (विशाण महिभासंपन्न), अश्यपगोत्रीय, सहा સઘળા પદાર્થોમાં ઉપયાગવાન, મહાવીર પ્રભુએ મારા પ્રશ્નના જવાબરૂપે આ
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩