SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 247
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१८ उ०१० सू० ४ द्रव्यधर्मविशेषादिनिरूपणम् २३३ पत्त्या आज्ञेश्वरसेनापत्यं कारयन् इतिग्राह्यम् 'तए णं समणे भगवं महावीरे जाव समोसढे' ततः खलु श्रमणो भगवान महावीरो यावत् समवस्तः अत्र यावत्पदेन पूर्वानुपूर्याचरन् इत्यादि विशेषाणानां संग्रहः 'जाव परिसा पज्जुवासई' यावत् परिषत् पर्युपास्ते अत्र यावत्पदेन परिषत्संमेलनादिकादीनां संग्रहः वाणिज्यग्रामात् परिषनिर्गता, भगवतः धर्मकथां श्रुत्वा परिषत् भगवन्तं त्रिविधया पर्युपासनया पर्युपास्ते इतिभावः । 'तएणं तस्स सोमिलस्स माहणस्स' ततः खलु तस्य सोमिलस्य ब्राह्मणस्य 'इमीसे कहाए लट्ठस्स समाणस्स' एतस्याः कथायाः लब्धार्थस्य सतः 'अयमेयारूवे जाव समुपज्जित्था' अयमेतावद्रूपो यावत् समुपपद्यत, अत्र यावत्पदेन आध्यात्मिकश्चिन्तितः प्रार्थितः कल्पितो मनोगतः संकल्पः, एतेषां ग्रहणं भवति यह उनका और अपने कुटुम्ब का आधिपत्य करता हुआ सुख से अपने समय को व्यतीत करता था यहां यावत्पद से 'पोरेवच्चं आणाईसरसेणावच्चं कारेमाणे' इन पदों का संग्रह हुआ है । 'तए णं से समणे भगव०' एक समय की बात है कि श्रमण भगवान महावीर यहां पर पधारे यहां यावत्पद से 'पुव्वाणुपुद्धि चरन्' इत्यादि विशेषणों का संग्रह हुभा है । 'जाव परिसा पज्जुवासई' यावत् परिषदा ने उनकी पर्युपासना की यहाँ पर यावत्पद से 'परिषत्संमेलन आदि का ग्रहण हुआ है। वाणिज्यग्रामनगर से परिषदा निकली भगवान् ने धर्मकथा कही, धर्मकथा को सुनकर के परिषदा ने भगवान् को तीन चार बंदन नमस्कार किया चंदना नमस्कार करके भगवान् की विविध प्रकार से पर्युपासना की । 'तए णं तस्स सोमिलस्स०' जब सोमिल ब्राह्मण को यह बात मालुम हुई तो 'अयमेया०' उसके मनमें ऐसा विचार उत्पन બ્રાહ્મણ તે શિષ્યનું અને પોતાના કુટુંબનું અધિપતિ પણ કરતે થકે સુખપૂર્વક पाताना समय वितादी २यो ता. मडियां यात्५४थी 'पोरवच्चं आणाईसरसेणा. वच्चं करेमाणे' से पहोना सब यो छ. "तए ण' से समणे भगवं०" ? સમયે શ્રમણ ભગવાન મહાવીર સ્વામી વિહાર કરતા કરતા આ વાણિજગ્રામ नगरमा ५था. मलियां यावत्पथी "पूर्वानुपूर्व्या चरन्” विगैरे विशेषणे! अडए थया छे. "जाव परिसा पज्जुवासई" यावत वालि श्राम नानी પરિષદા ભગવાનને વંદના કરવા નીકળી પ્રભુએ તેઓને ધર્માદેશના સંભળાવી ધર્મદેશના સાંભળીને પરિષદાએ ભગવાનને ત્રણવાર વંદના નમસ્કાર કર્યા. हना नभ२४॥२ ४ीने भगवान्नीत्रय प्राथी ५युपासना 3. 'तए णं तस्त्र मोमिलस्स." ते पछी न्यारे सेमित प्रायने । पातनी anty थप त्यारे 'अयमेया०' तेन भनमा मेवा वियार थये। -महियां यावत् पया શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩
SR No.006327
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages970
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size58 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy