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________________ - - - --- - - - - -- २३४ भगवतीसूत्रे इति एवं खलु समणे णायपुत्ते' एवं खलु श्रमणो ज्ञातपुत्रः पुनाणुपुचि चरमाणे' पूानुपूर्व्या चरन् नीर्थकरपरम्परया गच्छन् 'गामाणुगामं दुइज्जमाणे ग्रामा जुग्रामं द्रवन् गच्छन्-मार्गस्थग्राममत्यक्त्वा गच्छन् इत्यर्थः 'मुहं सुहेणं जाव इह आगए' सुखं सुखेन यावत् इह आगतः अत्र यावत्पदेन 'विहरमाणे' इत्यस्य ग्रहणं भवति 'जाव दूतिपलासए चेइए' यावत्पदेन 'इह समोसढे' इत्यस्य संग्रहः 'अहापडिरूवं जाव विहरइ' यथामतिरूपं यावत् विहरति अत्र यावत्पदेन अवग्रहं अवगृह्य संयमेन तपसा आत्मानं भावयन इत्यस्य संग्रहः 'तं गच्छामि णं समणस्स णायपुत्तस्स' तद्गच्छामि खलु श्रमणस्य ज्ञात पुत्रस्य 'अंतिय पाउन्मवामि' अन्तिके हुआ। 'यहां यावत्पद से 'आध्यात्मिकश्चिन्तितः प्रार्थितः, कल्पितः, मनोगतः, संकल्पः 'इन पदों का ग्रहण हुआहै। 'एवं खलु समणे णायपुत्ते पुवाणुपुविचरमाणेगामानुगामं दूइज्जमाणे सुहसुहेणंजाव इह आगए' पूर्वानुपूर्वी से तीर्थ कर परम्परा के अनुसार चलते हुए तथा एक ग्राम से दूसरे ग्राम में विहार करते हुए सुखशाता पूर्वक यहां पर आये हुए हैं। यहां यावत्पद से 'विहरमाणे' इस पद से विहार करते करते यहां पर आये हुए हैं। और 'जाव दूतिपलासए चेहए समोसढे' यावत् दुतिपलाश चैत्य में ठहरे हुए हैं। 'अहापडिरूवं जाव विहरई' ठहरने को उन्होंने वहां के वनपालक से आज्ञा प्राप्त कर ली है-यहां यावत्पद से 'अवग्रह अव. गृह्य संयमेन तपसा आत्मानं भावयन्' इन पदों का संग्रह हुआ है। 'तं गच्छामि णं समणस्स णायपुत्तस्स अंतियं पाउभवामि' तो मुझे उन "आध्यात्मिकश्चिन्तितः, प्रार्थितः, कल्पितः, मनोगतः, संकल्पः, भा पह! अड ४२राया छ. “एवं खलु समणे णायपुत्ते पुवाणुपुब्बि चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे सुहं सुहेणं जाव इह आगए पूर्वानुपूर्वी थी ती रानी ५२५रानुसार ચાલતા ચાલતા અને એક ગામથી બીજા ગામ સુધીનું વિહાર કરતાં કરતાં सुम'४ मडिया पधारेत छ. माडियां यावर५४थी “विहरमाणे" विहार ४२di Rai 2 ५६ ७Y ४२यु छे. मने “जाव दूइपलासए चेहए समोसढे" यावत् इति५ धानमा मिरामान छे. "जाव पडिरूव जाव विहरह" तमामे त्यो २२॥ भाटे त्यांना नानी साझा प्रा शन निभान या छ, मडियां यावत्पथी " अवग्रहं अवग्रह्य संयमेन तपसा आत्मानं भावयन्" मा ५४ो अहY ४२॥या छ. "तं गच्छमि ण समणस्स णायपुत्तस्स अंतियं पाउल्मवामि" तो ते सातपुत्र श्रम, भगवान्नी શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩
SR No.006327
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages970
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size58 MB
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