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________________ २३२ भगवतीसूत्रे कर्तव्यम् 'तत्थ णं वाणियगामे नपरे' तत्र खलु वाणिज्यग्रामे नगरे 'सोमिले नाम माहणे परिसर' सोमिलो नाम ब्राह्मणः परिवसति 'अड्डे जाव अपरिभूए' आढ्यो यावद् अपरिभूतः अत्र यावत् पदेन दीपादिविशेषणानां संग्रहो भवति भगवतीसूत्रस्थ द्वितीयशतकरञ्च मोद्देशवर्गिवतुं गिकानगरी स्थश्रावकवत् 'रिउवेद० जाव सुपरिनिट्ठिए' ऋग्वेद यावत् परिनिष्ठिनः स्कन्दकवत् अत्र यावत्पदेन यजुर्वेदादि वेदशिक्षाकराद्यनेकविधाङ्गादीनां संग्रहो भवति अत्र स्कन्दकमकरणं सर्वमेव अनुस्मरणीयम् | 'पंचण्डं खंडि यसयाणं' पञ्चानां खण्डिकशतानाम् | खण्डिकः शिष्यः 'सयस्स कुटुंबस्स य' स्वकस्य कुटुम्बस्य च ' आहेवच्चं जाव विरह' आधिपत्यं यावत्पदेन 'पोरेवच्च आणाईसर सेणावच्वं कारेमाणे' पौरतिक सूत्र में वर्णित हुए पूर्ण भद्र चैत्य उद्यान के ही जैसा है ऐसा समझना चाहिये । 'तत्थ णं वाणिकगामे०' इस वाणिज्यग्राम नगर में 'सोमिलेनाम ० ' सोमिल नाम का ब्राह्मण रहता था । 'अड्डे जाव अपरिभूए' यह आढ्य यावत् अपरिभूत था यहां यावत्पद से दीत आदि विशेषणों का ग्रहण हुआ है । भगवती सूत्रके द्वितीय शतक के पंचम उद्देशक में वर्णित हुए तुंगका नगरी में रहनेवाले श्रावक के जैसा यह था तथा स्कन्दक के जैसा 'रिउब्वेय० जाव सुपरिनिट्ठिए' यह ऋग्वेद आदि चारों वेदों का ज्ञाता था वेदशिक्षाकल्प आदि अनेक प्रकार के अङ्गों का जाननेवाला था । इसके वर्णन में स्कन्दक का प्रकरण सब ही यहां लगा लेना चाहिये | 'पंच' खंडियसयाणं' इसके ५०० शिष्य थे खण्डिक शब्द का अर्थ शिष्य है । 'सयस्स कुटुं बस्स य आहेबच्चं जाव विहरइ' अतः वववा पूलद्र उद्यान प्रमाणे समन्वु " तत्थ णं वाणियगामे० " मा बाणिज्य ग्राभ नगरमा “सोमिले नाम० " सोभित नामनेो ब्राह्मणु रहता तो " अड्ढे जाव अपरिभूए” ते खादय-भेटखे ! संपत्तिवाणी तो यावत् પરિભૂત-ખીજાથી પરાજય ન પામે તેવા હતા. અહિયાં યાવત્ પદથી ટ્વીસ વિગેરે પદાના સગ્રહ થયા છે. ભગવતી સૂત્રના બીજા શતકના પાંચમા ઉદ્દેશામ! વર્ણવેલા તુંગિકા નગરીમાં રહેવાવાળા શ્રાવક જેવા તે સેમિલ ब्राह्मण डतो. तेभन सहनी भू ते “रिउव्वेय जाव सुपरिनिट्ठिए" ते रुग्वे યર્જુવેદ સામવેદ અથવવેદ ચારે વેદને જાણકાર હતા. તેમજ શિક્ષા, કલ્પ જ્યાતિષ વ્યાકરણ નિરૂક્ત છંદ વિગેરે અનેક પ્રકારના અંગાને જાણવાવાળા हतो. तेनु वर्षानना वर्शन प्रभाये सधणु' समन्वु “पंच खंडिय मयाण" तेने पांयसेो ५००) शिष्यो उता ''डिम शहना अर्थ शिष्य ो प्रभावे छे. "सयरस कुडु बस्स य आहेवच्चं जाव विहरह" ते सोभित શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩
SR No.006327
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages970
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size58 MB
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