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________________ भगवतीस्त्रे सितः अतो भवन्तं साधुवादेन अनुमोदयामीतिभावः 'अस्थि णं गोयमा ! ममं वह अंतेवासी' सन्ति खलु गौतम ! मम बहवोऽन्तेवासिनः-शिष्याः 'समणा णिग्गंया छउमत्था' श्रमणा निर्ग्रन्थाः छमस्थाः 'जे णं णो पभू एवं वागरण वागरित्तए' ये खलु नो प्रभव एवम्-यथोक्तरूपं व्याकरणमुत्तरम् व्याकर्तुम्-उत्तरयितुम्' जहाणं तुम' यथा खलु स्वम्, हे गौतम ! त्वदन्ये ममानेके शिष्याः सन्ति किन्तु यथा स्वमसि समुचितोत्तरदाने समर्थ स्तथा नान्ये सन्ति, इतिभावः। 'तं सुठु णं तुमं गोयमा' तत् सुष्ठु खल्ल त्वं गौतम ! 'ते अन्नउथिए एवं बयासी' तान् अन्यगृथिकान् एवमवादीः। 'साहू णं तुम गोयमा ! ते अनउस्थिए एवं वयासी' साधु खलु गौतम ! त्वं तान् अन्ययुथिकान् एवमवादीः ॥ सू०२॥ प्राक् छअस्था एवं रूवेण उत्तरयितुं न समर्था इति कथितम् यद् छनस्थमेव अधिकृत्याह-'तए णं इत्यादि । मूलम्-तए णं भगवं गोयमे समणेणं भगवया महावीरेण एवं वुत्ते समाणे हटतुटे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ समुपासित हुभा है। इसलिये मैं तुमने जो कहा उसका अनुमोदन करता हूं। 'अस्थि णं गोयमा०' हे गौतम ! मेरे अनेक श्रमण निर्ग्रन्थ शिष्य हैं जो छद्मस्थ हैं। 'जे णं णो पभू एवं०' और तुम भी छमस्थ हो परन्तु वे तुम जैसा समुचित उत्तर नहीं दे सकते हैं । अतः 'तं सुडु णं तुमं गोयमा! ते अन्नउस्थिए एवं वयासी०' तुमने उन अन्ययूथिकों को जो ऐसा समुचित उत्तर दिया है वह बहुत अच्छा किया है। हे गौतम ! तुमने जो उन अन्ययूथिकों को ऐसा समुचित्त उत्तर दिया है वह बहुत अच्छा किया हैं इस प्रकार से प्रभु ने उनके उत्तर की अनुमोदना की॥ सू०२॥ है. ती तमा २ ४ऱ्या ते ९ मनमोहन मा छु'. "अस्थि णं गोयमा !" गौतम भा२१ भने श्रम नि-य शिष्य। छ. २ ७५२५ छ. “जे णं नो पभू एव०" भने ती ५५ ७५३५ छ।. ५२'तु त! तमाम्मे ४ प्रमाणेना योग्य उत्त२ पापी शता नथी. मेथी "तं मुठ्ठणं गोयमा ते अन्नउत्थिए एवं वयासी" तमामे त मन्ययूथिने २ योग्य उत्त२ माभ्यो छे, घर ઉત્તમ કર્યું છે. હે ગૌતમ! તમેએ તે અન્યમૂથિકને તે પ્રમાણેને સચોટ ઉત્તર આપે છે તે ઘણું જ ઉત્તમ કર્યું છે આ રીતે પ્રભુએ તેઓના ઉત્ત२ने अनुभाहन मायुः ॥ सू. २॥ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩
SR No.006327
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages970
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size58 MB
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