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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१८३०८ सु०२ गमनमाश्रित्य परतिर्थिकमतनिरूपणम्१७७ भगवन्तं महावीरं चन्दते नमस्यति' 'वंदित्ता नमंसित्ता णचासन्ने जाव पज्जुवासई' वन्दित्वा नमस्यित्वा नात्यासन्ने नातिदुरे नातिसमीपे उचितस्थाने स्थितः सन् यावत् पर्युपास्ते-माञ्जलिपुटः पर्युपासनां करोतीत्यर्थः 'गोयमाइ समणे भगवं महावीरें' गौतम ! इति एवं रूपेण भगवान् गौतम संबोध्य श्रमणो भगवान् महावीरः 'भगवं गोयम एवं वयासी' भगवन्तं गौतमम् एवम्-वक्ष्यमाणमकारेण अवा. दीद-उक्तवान् । किमुक्तवान् भगवान् गौतमं तत्राह-'सुटु णं इत्यादि । सुटु णं तुमं गोयमा' सुष्टु खलु त्वं गौतम ! 'ते अन्नउत्थिए एवं वयासी' तान् अन्यय. थिकान् एवम्-पूर्वोक्तरूपं वचनमवादीः 'साहू गं गोयमा !' साधु खलु गौतम ! 'ते अन्नउथिए एवं वयासी तान् अन्ययूथिकान् एवमवादीः हे गौतम! यत् त्वम् अन्ययूथिकान् प्रति सम्यगेव उक्तवान् अयमेव पन्थाः जिनशासनप्रवर्तकैः समुपाच्छित्ता०' वहां आकर के उन्हों ने श्रमण भगवान् महावीर को बन्दना की नमस्कार किया। 'वंदित्ता नमंसित्ता' वंदना नमस्कार कर फिर वे न उनसे अतिदूर और न उनके अति समीप ऐसे समुचित स्थान पर खडे हो गये और वहीं से वे यावत् उनकी दोनों हाथ जोडकर पर्यु. पासना करने लगे । 'गोयमाइ समणे भगवं महावीरे' हे गौतम ! इस प्रकार से सम्बोधित कर श्रमण भगवान महावीरने 'भगवं गोयम एवं वयासी' भगवान गौतम से ऐसा कहा-'सुटु णं, इत्यादि' हे गौतम ! तुमने जो पूर्वोक्त रूप से उन अन्ययूथिकों से कहा है वह ठीक कहा है 'साहू णं गोयमा' हे गौतम ! जो पूर्वोक्तरूप से उन अन्य यूथिकों से कहा है वह बहुत अच्छा कहा हैं यही मार्ग जिनशासकप्रवर्तकों द्वारा તે પછી તેઓ જ્યાં શ્રમણ ભગવાન મહાવીર સ્વામી બિરાજમાન હતા ત્યાં मा०यI. "उवागच्छित्ता०" त्या भावाने तमामे श्रम भगवान महावीर स्वाभीत ना ४ नमः४।२ .. "वंदित्ता नमंसित्ता" न श नम४१२ કરીને તેઓ ભગવાનથી બહુ દૂર નહીં તેમજ બહુ નજીક પણ નહીં તે રીતે ઉચિત સ્થાન પર ઉભા રહી ગયા. અને ત્યાંથી જ યાવત્ બને હાથ જોડીને तमानी ५युपासना ४२ ग्या. त्यारे “गोयमाइ समणे भगवं महावीरे" है गौतम ! मेरीत समाधन शन श्रमय भगवान महावीर स्वामी "भगवं गोयम एवं वयासी" सगवान् गौतमने ॥ प्रभाए यु'--"सुठुणं" त्याह હે ગૌતમ તમેએ તે અન્ય મૂથિકને પૂર્વોતરૂપથી કહ્યું છે, તે ઠીક જ કહ્યું छ. “साहू णं गोयमा" , गौतम ! तमामे त अन्य यूथिने पूरित ३५थी કહ્યું છે તે ઘણું જ ઠીક કહ્યું છે. આજ માર્ગ જનશાસન પ્રવર્તકેએ સેવેલે भ०२३ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩
SR No.006327
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages970
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size58 MB
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