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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१८ उ०८ सू०२ छद्मस्थानां द्विप्रदेशादिस्कंधमाननि० १७२ वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी। छ उमत्थे णं भंते ! मणूसे परमाणुपोग्गलं किं जाणइ पासइ उदाहु न जाणइ न पासइ ? गोयमा अत्थेगइए जाणइ न पासइ अत्थेगइए न जाणइ न पासइ । छउमत्थे णं भंते! मणूसे दुपएसियं खंधं किं जाणइ पासइ ? एवं चेव एवं जाव असंखेजपएसियं । छउमत्थे नं भंते ! मणूसे अगंतपएसियं खंधं किं पुच्छा गोयमा! अस्थेगइए जाणइ पासइ१, अत्थेगइए जाणइ न पासइ२, अस्थेगइए न जाणइ पासइ३, अत्थेगइए न जाणइ न पासइ४। आहो. हिए णं भंते ! मगुस्से परमाणुपोग्गलं. जहा छउमत्थे एवं आहोहिए वि जाव अणंतपएसियं। परमाहोहिए णं भंते ! मणूसे परमाणुपोग्गलं जं समयं जाणइ तं समयं पासइ जं समयं पासइ तं समयं जाणइ ?। णो इणटे समटे ।से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ परमाहोहिए णं मणूसे परमाणुपोग्गलं गं समयं जागइ नो तं समयं पासइ जं समयं पासइ नो तं समयं जाणइ ? गोयमा ! सागारे से नाणे भवइ अणागारे से दसणे भवइ से तेणटेणं जाव नो तं समयं जाणइ एवं जाव अणंत. पएसियं । केवली णं भंते ! मणुस्से परमाणुपोग्गलं. जहा परमाहोहिए तहा केवली वि, जाव अणंतपएसियं । सेवं भंते। सेवं भंते ! त्ति ॥सू०३॥
अट्ठारससए अट्रमो उद्देसओ समत्तो।
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩