SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 697
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १८ उ० ३ सू० ४ बन्धस्वरूपनिरूपणम् ६८३ मेघमालायाः। भगवानाह-'मागदिय पुत्ता' इत्यादि, मागंदिय पुत्ता' हे माकन्दिकपुत्र ! 'दुविहे पन्नत्ते' द्विविधः प्रज्ञप्तः, 'तं जहा' तद्यथा-'साइयवीससाबंधे य अना. इय वीससाबंधे य' सादिकविस्रसाबन्धश्च अनादिकविसाबन्धश्च तत्र सादिकःआदिसहितो यः स्वभावापरपर्यायः विस्रसाबन्धो मेघमालादीनां स सादिकविस सावन्धः । अनादिक:-आदिरहितश्च विसाबन्धो धर्मास्तिकायादीनाम परस्परम् । 'पोगबंधे णं भंते ! कइविहे पन्नत्ते' प्रयोगबन्धः-रज्ज्वादिप्रयोगेण द्रव्याणां जीवकृतो बन्धः खल भदन्त ! कतिविधःप्रज्ञप्तः ? भगवानाह-'मागंदियपुत्ता' हे माकन्दिकपुत्र ! 'दुविहे पनत्ते' द्विविधः प्रज्ञप्तः 'तं जहा' तद्यथा 'सिढिलबंधण बंधे य घणियबंधणबंधे' य' शिथिलबन्धनबन्धश्च गाढबन्धनबन्धश्चेति । 'भाव माकन्दिकपुत्र ! विसप्ताबन्ध 'दुविहे पन्नत्ते' दो प्रकार का कहा गया है-'तं जहा साइयविससा०' एक सादिकविस्त्रसाबन्ध और दूसरा अनादिकविस्त्र साधन्ध आदि सहित जो विस्रसाबन्ध होता है वह सादिकविस्रसाबन्ध है जैसे मेघमालादिकों में होता है। यह उनका बन्ध किसी के द्वारा कराया नहीं जाता है। किन्तु स्वभावतः ही होता रहता है । तथा आदि रहित जो बन्ध होता है वह अनादिकविरसा. बन्ध है । जैसे धर्मास्तिकायादिकों परस्पर में घन्ध है। जीवों द्वारा जो रज्जु आदि से बांधना होता है वह प्रयोगबन्ध है । यह प्रयोगबन्ध भी शिथिलप्रयोगबन्ध और गाढप्रयोगबन्ध के भेद से दो प्राकार का है । यही बात 'पभोगबंधेणं' इत्यादि से लेकर 'मागंदियपुत्ता' आदि पदों द्वारा यहां प्रश्नोत्तर के रूप में कथन किया जाता है-इसमें उत्तरमा प्रमु ४ छ है-'माकदियपुत्ता ! 8 भा पुत्र! विखसाम 'दुविहे पण्णत्त' में प्रा२ने सछे-'तं जहा साइय विससा०' से सा વિસ્ત્ર સાબંધ અને બીજે અનાદિ વિસસાબંધ અદિ સહિત જે વિસસાબંધ થાય છે તે સાદિ વિસસાબંધ છે. જે રીતે વાદળો સ્વાભાવિક રીતે મેઘસમૂહોમાં થાય છે. જે રીતે વાદળાના પગલે એક થઈને બંધાય છે. આ તેનો બંધ કેઈ બીજા દ્વારા કરાવાતો નથી. પરંતુ સ્વભાવથી જ થાય છે. તથા આદિ રહિત જે બંધ થાય છે, તે અનાદિ વિસ્તક્ષાબંધ છે. જેવી રીતે ધર્મા સ્તિકાયાદિકમાં પરસ્પરમાં બંધ થાય છે. દ્વારા જે દેરી વગેરેથી બંધન થાય છે, તે પ્રયોગ બંધ છે. આ પ્રયોગબંધ પણ શિથિલ પ્રોગબંધ અને साढप्रयोगमा लेथी में प्रारने छे. ते पात 'पओगबंधे थे' त्याहिथी मारभार 'मागदियपुत्ता' भयि पुत्र मा प्रभाऐना पोथी मात પ્રગટ કરવામાં આવેલ છે. શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨
SR No.006326
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages710
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy