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भगवतीसूत्रे
तमेव दर्शयति- 'तं जहा ' इत्यादि, 'तं जहा' तद्यथा - 'दव्वबंधे य भावबंधे य' द्रव्य बन्धश्च भावबन्धथ । 'दव्वबंधे णं भंते ! कवि पन्नते' द्रव्यबन्धः खलु भदन्त ! कतिविधः प्रज्ञप्तः ? भगवानाह - 'मागंदियपुत्ता ! दुविहे पन्नत्ते' माकन्दिकपुत्र ! द्विविधो द्रव्यबन्धः प्रज्ञप्तः, द्रव्यबन्धो नाम द्रव्येण स्नेहरज्ज्वादिना अथवा द्रव्यस्य परस्परेण बन्धो द्रव्यबन्ध इति स च द्रव्यबन्धो द्विविधः, तमेव दर्शयति- 'तं जहा ' तद्यथा - 'ओगबंधे य बीससाबंधे य' प्रयोगवन्धश्च विसावा | 'वीससाधे गं भंते ! कहविहे पन्नत्ते' विस्रसाबन्धः खलु भदन्त ! कतिविधः प्रज्ञप्तः, विस्रसास्वभावस्तया विस्रसया जायमानो बन्धो विस्रसाबन्धः स्वाभाविक इत्यर्थः यथा इस प्रकार से है - 'दव्वबंधे य भावबंधे य' एक द्रव्य बन्ध और दूसरा भाव बंध, अव माकन्दिकपुत्र अनगार प्रभुसे ऐसा पूछते हैं- 'दव्यबंधे णं भंते! कइविहे पण्णसे' हे भदन्त ! द्रव्यबन्ध कितने प्रकार का कहा गया है ? उत्तर में भगवान् कहते हैं- 'मार्गदियपुत्ता ! दुबिहे पनसे' हे माकन्दिक पुत्र द्रव्य बन्ध दो प्रकार का कहा है-स्नेहरज्जु आदि के द्वारा जो बन्ध होता है, वह द्रव्यबन्ध है । अथवा द्रव्य का परस्पर में जो बन्ध होता है वह द्रव्यबन्ध है । द्रव्यबन्ध के दो प्रकार ऐसे हैं - 'पभोगबंधे य बीस साबंधेव' एक प्रयोगबन्ध और दूसरा विस्रसाबन्ध रज्वादिक प्रयोग से जो बन्ध होता है वह प्रयोगबन्ध है । और स्वाभा विक जो बन्ध होता है वह विस्रसाबन्ध है । जैसे मेघमाला का बन्ध । अब मान्दिकपुत्र प्रभु से ऐसा पूछते हैं- 'वीससा० ' हे भदन्त ! विस्रसा बन्ध कितने प्रकार का है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'मार्गदिय पुत्ता० !' हे
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'दव्वबधे य भावब ंधे य" मेड द्रव्यमंध याने मीले लावगंध दूरीथी भाङहिउयुत्र असुने छे छे ! 'दनबंधे णं भंते! कइविहे पण्णत्ते' हे भगवन् द्रव्य अध टसा अारना छे ? तेना उत्तरमा प्रभु - 'माकंदियपुत्ता ! दुहे पण भात्रि द्रव्यमध मे अहारना उहेस छे, स्नेह પાશ વગેરેથી જે અંધ થાય છે તે દ્રવ્યખન્ય છે. અથવા દ્રબ્યાના અન્યા ન્યમાં જે બંધ થાય છે તે દ્રવ્ય અંધ છે. દ્રવ્યમધના બે પ્રકાર આ પ્રમાણે छे. 'पओगबंधे य वीससाबंधे य' मे प्रयोग अन्ध अने मीले वित्रसामध રજજુ વિગેરેના પ્રયાગથી જે મધ થાય છેતે પ્રયાગઅંધ છે. અને જે ખંધ સ્વાભાવિક રીતે થાય તે વિસ્રસાખધ છે. જેમકે મેઘસમૂહોને સ્વાભાવિક અંધ. वे भाई हीपुत्र मनगार इरीथी शोवु छे छे डे–' वीससा बंधे गं
भदंत कवि पण्णत्ते ?' हे लगवन् विससागंध डेंटला अमरनो छे ? तेना
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨