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________________ ६६६ भगवतीसूत्रे एवं खलु आर्याः ! 'नीललेस्से पुढवीकाइए जाव अंतं करेइ' नीललेश्यः पृथिवीकायिको यावद् अन्तकरोति, 'एवं काउलेस्सो वि' एवं कापोतिकलेश्योऽपि 'जहा पुढवीकाइए एवं आउकाइए वि' यथा पृथिवीकायिक एवमकायिकोऽपि 'एवं वस्सइकाइए वि' एवं वनस्पतिकायिकोऽपि-कृष्णनीलकापोतिकलेश्य पृथिवीकायिकाकायिकवनस्पतिकायिकोऽपि बोद्धव्य इति भावः। 'सच्चे णं एसम? सत्यः खलु एषोऽर्थः, 'सेव भंते ! सेव भंते ! ति तदेव भदन्त ! तदेवं भदन्त ! यद् देवानुप्रियेण कथितम् तदेवमेव-सत्यमे वेति कथयित्वा 'समणा णिग्गंथा समणं भगवं महावीरं वदति नमसंति' श्रमणा निग्रन्थाः श्रमणं भगवंतं महावीर वन्दन्ते नमस्यन्ति, 'बंदित्ता नमंसित्ता' वन्दित्वा नमस्यित्वा 'जेणेव खलु अज्जो ! नीललेस्से पुढवीकाइए जाव अंत करेई' इसी प्रकार से हे आर्यो! जो नौललेश्यावाला पृथिवीकायिक जीव है वह यावत् समस्त दुःखों का अन्त कर देता है इस प्रकार कृष्णनीलकापोतलेझ्यावाले पृथिवीकायिक अकायिक और वनस्पतिकायिक जीव यावत् समस्त दुःखों का अन्त कर देते हैं । 'सच्चे णं एसमडे' वह अर्थ सत्य है। सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति' आप देशानुप्रियने जो कहा है वह सत्य ही कहा है २ इस प्रकार कहकर 'समणा निग्गंथा समणं भगवं महावीर चंदंति, नमसति' श्रमनिर्ग्रन्थों ने श्रमण भगवान् महावीर को बन्दना की, नमस्कार किया 'वंदित्ता नमंसित्ता जेणेव मागंदियपुत्ते अणगारे तेणेव उवागच्छंति' वन्दना नमस्कार करके फिर वे माकन्दिक पुत्र अनगार के पास आये। वहां आकर के 'मागंदियपुत्तं०' माकन्दिक पुत्र अनगार को वन्दना को नमस्कार किया। 'वदित्ता नमंसित्ता एयमटुं सम्मं विणएणं भुज्जो २ खामे ति' वन्दना नमस्कार कर फिर "एवं खल अज्जो नीललेसे पुढवीकाइए अंतं करेड" सरी प्रमाणे माया જે નીલેશ્યાવાળા પૃથ્વીકાયિક જીવો છે. તે પણ યાવત્ સમસ્ત દુઃખને मत 3रे छे. 'सच्चे णं एसम?" मा ४थन सत्य छे. सेवं भंते ! सेवं भंते ! ત્તિ” હે ભગવન્! આપી દેવાનુચેિ જે કહ્યું છે તે સત્ય છે. આપનું કથન યથાર્થ छ. ॥ प्रभारी डीने “समणा निगगंथा समणं भगवं महावीरं वंदति नमसंति" श्रम मगवान महावीरने ना ४ नमः॥२ या "वंदित्ता नंमंसित्ता जेणेव मागदियपुत्ते अणगारे तेणेव उवागच्छंति' पहना नम२४॥२ ४शन ५छी तेथे मात्रनी पासे मा०या त्या भावाने “मागंदियपुत्तं" भाहपुत्र सनमारने ना 3री नभ४२ र्या "वंदित्ता नमंसित्ता एयंमद सम्मं विणएणं भुज्जो भुज्जो खामेति' पहना नम२४१२ उशने ते पछी શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨
SR No.006326
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages710
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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