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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१८ उ०१ सू०१ प्रथमाप्रथमत्वे जीवद्वारनिरूपणम् ५४९ पढमा अपढमा' नो प्रथमाः अनादौ संसारे जीवत्वस्यानादि सिद्धित्वात् किन्तु अपथमा एव अपाप्तप्राप्तेरभावात् इति, 'एवं जाव वेमाणिया' एवं यावत् वैमानिकाः यथा जीपीवत्व प्राप्तपूर्व मेव नामाप्तपूर्व तथैव नारकत्वादिवैमानिकपर्यन्तमपि प्राप्तपूर्वमेव नाप्राप्तपूर्व मितिभावः । 'सिद्धाणं पुन्छ।' सिद्धाः खलु पृच्छा, सिद्धाः खलु भदन्त ! प्रथमा अपथमा वेति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'पढमा नो अपदमा' प्रथमाः नो अपथमाः सिद्धत्वस्य इतः पूर्व मप्राप्तत्वेनाप्राप्तप्राप्ततया प्रथमा न तु अप्रथमा पूर्व प्राप्तेरभावादिति । इति जीवविषयकं प्रथमं द्वारम् । प्रथम नहीं है। किन्तु अधम है-क्योंकि अनादि काल से इस अनादि संसार में जीवों की यह पर्याय उनके साथ ही चली आ रही है । अतः इसका सम्बन्ध उनके साथ अमुक समय से हुआ है ऐसा नहीं कहा जा सकता है-इसलिये यह उनकी पर्याय अप्रथम ही है, एवं जाव वेमाणिया' इसी प्रकार का कथन इस जीवत्व पर्याय का यावत् वैमानिक जीवों तक में जानना चाहिये । अर्थात् वैमानिक तक के जीवों में -चौबीस दण्डकों में-यह पर्याय अप्रथम ही है। प्रथम नहीं है। 'सिद्धाणं पुच्छा' सिद्धों में पर्याप सादि होने से प्रथम है अप्रथम नहीं है । ऐसा यह उत्तर प्रभुने सिद्ध पर्याय प्रथम है या अप्रथम है अर्थात् सिद्ध प्रथम है या अप्रथम है ? इस प्रश्न के उत्तर में दिया है । सिद्धाणं पुच्छा' यह सूत्र गौतमने शङ्कारूप से उपस्थित किया है-तय प्रभुने 'गोयमा ! पढमा! અપ્રથમ છે. કેમ કે-અનાદિકાળથી આ અનાદિ સંસારમાં જીવોની આ પર્યાય તેઓની સાથે જ ચાલી આવે છે, જેથી તેને સઍધ તેઓની સાથે અમુક સમયથી થયે છે. એવું નથી. તેથી આ તેઓની પર્યાય અપ્રથમ જ છે. "एवं जाव वेमाणिया" मा शतनु जयन ॥ १५४ानी पर्यायी यावत् વૈમાનિક સુધીમાં સમજ અર્થાત્ વૈમાનિક સુધીના જીના ચોવીસ मा म पर्याय मप्रथम ४ छ. प्रथम नथा. "सिद्धाणं पुच्छा" સિદ્ધોમાં સિદ્ધત્વ પર્યાય સાદિ હોવાથી પ્રથમ છે, અપ્રથમ નથી. આ પ્રમાણેને ઉત્તર પ્રભુએ સિદ્ધપર્યાય-પ્રથમ છે? કે અપ્રથમ છે? અર્થાતુ સિદ્ધ પ્રથમ છે? કે અપ્રથમ છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તર રૂપે કહ્યું છે. "सिद्धाणं पुच्छा" मा सूत्र मौतम स्वामी प्रश ३ 36. सारे શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨
SR No.006326
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages710
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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