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भगवतीसूत्रे -सिद्धत्वपर्यायेण किं प्रथम:-- प्रथमताधर्मविशिष्टः अथवा अप्रथमः इति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'पढमे नो अपढमे' प्रथमो न अपथमः सिद्धेन सिद्धत्वपर्यायस्य अमाप्तपूर्वस्य प्रथमत एव प्राप्तत्वात् तेन प्रथम एव नाप्रथम इति । एकवचनमाश्रित्य प्रथमसामथमत्वयो विचारं कृत्वा बहुवचनमाश्रित्य प्रथमत्वामथ मत्यो विचाराय आह-'जीवा ' इत्यादि । 'जीवा गंभंते !' जीवाः खलु भदन्त ! 'जीवभावेणं किं पढमा अपढमा' जीवभावेनजीवत्वपर्यायेण किं प्रथमा अथवा अप्रथमा जीवैर्हि जीवत्वं कदाचित्माप्तपूर्वमप्राप्तपूर्व वेति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'नो किं पढमे अपढमे' हे भदन्त ! सिद्धत्वपर्याय की अपेक्षा सिद्ध क्या प्रथमता धर्मविशिष्ट है' या अप्रथम है ? इसके उत्तरमें प्रभु कहते हैं'गोयमा ! पढमे नो अपढमे' हे गौतम ! सिद्धत्वपर्याय की अपेक्षा सिद्ध अवस्था प्रथमता धर्म विशिष्ट है अप्रथम नहीं । क्योंकि सिद्धने वह पर्याय कभी नहीं पाई-पहिले पहिल ही पाई है। इससे उसकी अपेक्षा वह उसकी पर्याय प्रथम ही है। अप्रथम नहीं हैं। इस प्रकार यह जो प्रथमता
और अप्रथमता का कथन किया गया है वह एकवचन को आश्रित करके किया गया है-अब बहुवचन को लेकर प्रथमता और अप्रथमता का विचार करने के लिये गौतम प्रभु से एसा पूछते हैं-'जीवाणं भंते ! जीवभावेणं किं पढमा, अपढमा' हे भदन्त ! समस्त जीव जीवत्व पर्याय की अपेक्षा से प्रथम हैं या अप्रथम हैं ? अर्थात् जीवों ने जीवत्व पर्याय पहिले पाई हैं या पहिले नहीं पाई है ? इसके उत्तरमें प्रभु कहते हैं'गोयमा ! नो पढमा, अपढमा' हे गौतम ! जीवों की यह जीवत्व पर्याय
ટીકાથ––હે ભગવન સિદ્ધપણાની પર્યાયની અપેક્ષાએ સિદ્ધિો પ્રથમતા ધર્મવાળા છે? કે અપ્રથમ છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ કહે છે કે
-'गोयमा ! पढमे नो अपढमे !' है गौतम! सिद्धत्व पर्यायनी अपेक्षा સિદ્ધ અવસ્થા પ્રથમ છે અપ્રથમ નથી. આ રીતે જે આ પ્રથમતા અને અપ્રથમતાનું કથન કર્યું છે, તે એક વચનને આશ્રય કરીને કરવામાં આવ્યું છે. હવે બહુવચનને આશ્રય કરીને પ્રથમતા અને અપ્રથમતાને વિચાર કરવા भाट गौतम स्वामी प्रभुने से पूछे छे ?--"जीवाणं भंते ! जीवभावेणं किं पढमा, अपढमा" है सावन
साना पयायनी अपेक्षाथी प्रथम છે? કે અપ્રથમ છે? અર્થાત્ જીએ જીવ પર્યાય પહેલાં પ્રાપ્ત કરી છે કેपडे प्राप्त नथी ४१ १ मा प्रश्न उत्तरमा प्रभु छ ४-'गोयमा ! नो पढमा, अपढमा" गौतमलवानी मानी पर्याय प्रथम नयी, ५२
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨