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________________ भगवतीस्त्रे भणितव्यम् , यथौदारिकशरीरविषये च प्रोक्तं तथैव श्रोत्रेन्द्रियविषयेऽपि विखेयम् । 'नवरं' नवरं भेदस्त्वयम्-'जस्स अस्थि सोइंदियं' यस्यास्ति श्रोत्रेन्द्रियम् तस्य वाच्यमिति । 'एवं चविखदियघाणिदियजिभिदियफातिदियाण वि' एवं चक्षुरिन्द्रियघ्राणेन्द्रियजिह्वेन्द्रियस्पर्शनेन्द्रियाणामपि, एवमेव श्रोत्रेन्द्रियवदेव चक्षुरिन्द्रियादिविषयेपि विचारः कर्त्तव्यः, 'नवरं जाणियव्वं जस्स जं अस्थि' नवरं ज्ञातव्यं यस्य यत् अस्ति भेदस्तु एतावानेव यत् यस्य जीवविशेषस्य यत् इन्द्रियं भवति तस्य जीवस्य तद्दण्ड के तादृशेन्द्रियविषयको विचारः कर्त्तव्य इत्येवं ज्ञातव्यमिति । गौतमः पृच्छति-'जीवे णं भंते जीवः खल्लु भदन्त 'मणजोगं निमतेमाणे किं अहिगरणी अहिगरणं' मनोयोग निर्वतमानः किम् अधिकरणी हे गौतम ! जैसा कथन औदारिकशरीर के विषय में किया गया है ऐसा ही कथन श्रोत्रेन्द्रिय के विषय में भी कर लेना चाहिये । परन्तु जो इस कथन में विशेषता है वह इस प्रकार से है-'नवरं जस्स अस्थिसोइंदियं कि यह इन्द्रिय जिस जीव के होती है उस जीव की इस इन्द्रिय को लेकर उसके विषय में कथन करना चाहिये । 'एवं चक्खिदिय घाणिदियजिभिदिय, फासिंदियाण वि' इसी प्रकार चक्षुइन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय जिह्वाइन्द्रिय और स्पर्शन इन्द्रिय इन इन्द्रियवाले जीवों के सन्बन्ध में भी ऐसा ही कथन जानना चाहिये । 'नवरं जाणियव्वं जस्स जं अस्थि' अर्थात् ये इन्द्रियां जिन २ जीवों को होती है वे जीव अधि. करणी भी होते हैं और अधिकरणरूप भी होते है। ___अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'जीवेज भते ! मणजोगं निव्व. त्तमाणे, किंअहिगरणी अहिगरणं 'हे भदन्त ! मनोयोग की निर्वर्तना કર્યું છે એવું જ કથન શ્રોત્રેન્દ્રિયવાળાના વિષયમાં પણ સમજી લેવું पत' । ४थनमा २ विषेशता छ ते मारीत छे. “ जस्स अस्थि स्रोई. दिय" ॥ श्रोत्रन्द्रिय रे ने डाय छे ते पनी ते धन्द्रियन धन तना विषयमा ४थन ४२वु नये. “ एवं चक्खिंदिय घाणिदिय जिभिंदिय, फासिं दियाण वि" मे शत यक्षुन्द्रिय, प्राधान्द्रय, २०७४न्द्रिय भने १५० नन्द्रियावान समयमा ५९ मे थन सभ . "नवरं जाणियव्वं जस्स जं अत्थि" मीतू से ७५२ ४जीन्द्रियो २२७वान डाय છે. તે જીવ અધિકરણ પણ હોય છે, અને અધિકરણ રૂપ પણ હોય છે. डवे गौतम स्वामी प्रभुने मे पूछे छे 3-“जीवे णं भंते ! मणजोगं निव्वचेमाणे किं अहिंगरणी अहिगरण" भगवन् ! मनायोनी नितना શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૨
SR No.006326
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages710
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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