________________
प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १७ उ० ३ सू०२ चलनास्वरूपनिरूपणम् ४३९ कथिता, पञ्चभेदानेव दर्शयति 'तं जहा' इत्यादि । 'तं जहा तद्यथा 'ओरालिय. सरीरचलणा जाव कम्मगसरीरचलणा' औदारिकशरीरचलना यावत् कार्मणशरीरचलना अत्र यावत्पदेन वैक्रियाहारकतैजसशरीराणां ग्रहणं कर्तव्यम् तथा चौदारिकवैक्रियाहारकतैजसकार्मणशरीराणां पञ्चत्वात्संबद्धा चलनापि पञ्चपकारा भवतीति । 'इंदियचलणा णं भंते !' इन्द्रियचलना खलु भदन्त ! 'कइविहा पण्णत्ता' कतिविधा-कतिपकारा प्रज्ञप्ता कथिता ? भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'पंचविहा पण्णत्ता' पञ्चविधा प्रज्ञप्ता इन्द्रियाणां श्रोत्रेन्द्रिया णाम् चलना तत्तायोग्यपुद्गलानामिन्द्रिरूपतया परिणमने इन्द्रियनिष्ठो व्यापार की कही गई है। 'तं जहा' जैसे 'ओरालियसरीरचलणाजाव कम्मगसरीरचलणा' औदारिकशरीरचलना यावत् कार्मणशरीर चलना यहां यावत्पद से 'वैक्रिय, आहारक, तेजस' इन शरीरों का ग्रहण हुआ है । इसलिये शरीरों के पांच होने से तत्संबद्ध चलना पांच प्रकार की कही गई है।
अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'इंदियचलणा णं भंते! कइविहा पण्णत्ता' हे भदन्त ! इन्द्रियचलना कितने प्रकार की कही गई है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा ! पंचविहा पण्णत्ता' हे गौतम ! इन्द्रियचलना पांच प्रकार की कही गई है 'तं जहां वे पांच प्रकार ये हैं-'सोइंदिय चलणा जाव फासिदियचलणा 'श्रोत्रेन्द्रियचलना यावत् स्पर्शनेन्द्रियचलना यहां यावत् शब्द से चक्षुइन्द्रिय, घाणेन्द्रिय और रसनेन्द्रिय इसका ग्रहण हुआ है श्रोत्रादि इन्द्रियों के प्रायोग्यपुद्गलों का इन्द्रियरूप से परिणमन होने में जो इन्द्रियनिष्ठ व्यापार है उसका नाम इन्द्रियचलना प्रारना ही छ. "तं जहा" a मा प्रमाणे छ-" ओरालियसरीर चलणा जाव कम्मगसरीरचलणा" मोहरि शरी२ नमडियां यावत्यथा "वैठिय, मा २४, तेस, 24। शरीरानु घड थयुछे. रथी पाय ४२॥ શરીર હોવાથી તે તે શરીર સંબન્ધી ચલના પણ પાંચ પ્રકારની છે.
હવે ગૌતમ સ્વામી ઈદ્રિય ચલનાના વિષયમાં પ્રભુને પૂછે છે કે"इंदियचलणाणं भंते ! कहविहा पण्णत्ता" सपनद्रिय यसना । प्रश्नी अपामा भावी छ ? तन। उत्तरमा प्रभु ४३ छ , “गोयमा ! पंचविहा पण्णत्ता" गौतम छद्रिय बना पांय प्रा२नी ४ाम भावी छ. "तं जहा" ते म। रे छ. "सोइंदियचलणा जाव फासिंदियचलणा" શ્રોત્રંદ્રિય ચલના યાવત્ સ્પર્શનેંદ્રિય ચલના અહિં યાવત્ શબ્દથી ચક્ષુ ઈદ્રિય, ઘાણ ઈન્દ્રિય, અને રસના ઈદ્રિય એ ત્રણે ગ્રહણ થયા છે. શ્રોત્ર
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨