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________________ ३९४ भगवतीस्त्रे श्रमणादयः पूर्व प्रदर्शिताः, तद्विषयेऽन्ययूथिकमतमुपदर्शितम् , तस्मक्रमादेव पुनरपि अन्ययूथिकमतमुपदर्शयन्नाह-'अन्न उत्थिया णं भंते !' इत्यादि । मूलम्-अन्नउत्थिया णं भंते! एवमाइक्खंति जाव परूवैति एवं खलु पाणाइवाए मुसावाए जाव मिच्छादसणसल्लेवहमाणस्त अन्ने जीवे अन्ने जीवाया, पाणाइवायरमणे जाव परिगहवेरमणे कोहविवेगे जाव मिच्छादसणातल्लविवेगे वट्टमाणस्स अन्ने जीवे अन्ने जीवाया। उप्पत्तियाए जाव पारिणामियाए वहमाणस अन्ने जीवे अन्ने जीवाया। उग्गहे ईहाए अवाए धारणाए वढमाणस्प्त जाव जीवाया। उठाणे जाव परकमे वट्टमाणस्स जाव जीवाया। नेरइयत्ते तिरिक्खमणुस्सदेवत्ते वट्टमाणस्स जाव जीवाया। नाणावरणिज्जे जाव अंतराइए वट्टमाणस्स जाव जीवाया १। एवं कण्हलेस्साए जाव सुक्कलेस्लाए२, सम्मबिट्ठीए३, एवं चक्खुदंसणे४, आभिणिबोहियणाणे५, मति अन्नाणे३, आहारसन्नाए४. एवं ओरालियसरीरे५, एवं मणोजीए६, सागारोवओगे अणागारोवओगे वट्टमाणस्स अन्ने जीवे अन्ने जीवाया से कहमेयं भंते! एवं ? गोयमा! जं णं ते अन्नउत्थिया एवमाइक्खंति जाव मिच्छं ते एवमाइक्खंति.४। अहं पुण गोयमा! एवमाइक्खामि जाव लेना चाहिये अर्थात् ये सब बाल ही होते हैं। न पंडित होते हैं और न पालपण्डित होते हैं। क्योंकि यहां पर भी सर्वविरति और देश विरति का सर्वथा अभाव रहता है । सू० २ ॥ અને વૈમાનિક બાલ જ હોય છે. તેઓ પંડિત હોતા નથી તેમજ બાલ પંડિત પણ હોતા નથી કેમ કે તે એમાં સર્વ વિરતિ અને દેશ વિરતિનો સર્વથા અભાવ રહે છે. તે સૂત્ર ૨ છે શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૨
SR No.006326
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages710
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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