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________________ ३९२ भगवतीस्त्रे का भवन्ति किम् इति प्रश्नः, भगवानाइ-'गोयमा' हे गौतम ! 'नेरहया बाळा' मैरयिकाः बालाः सर्वथा विरतिरहितत्वात् । 'णो पंडिया' नो पण्डिताः नैरयिकाः सर्वविरतेरभावात विरतिमतामेव पण्डितत्वात् 'नो बालपंडिया' नो बाल पण्डिता नारकाः देशविरतेरभावात् । 'एवं जाव चउरिदियाणं' एवं यावत् चतुरिन्द्रियाणाम् यथा नैरयिका बाला एव न पण्डिता न वा बालपण्डिताः तथा एकेन्द्रिया इत्यारभ्य चतुरिन्द्रियपर्यन्ताः जीवा ऽपि बाला एव नो पण्डिताः न वा बालपण्डिताः सर्वविरतर्देशविरतेर्वा अमावात् इति आलापकपकारकश्च स्वयमेव ऊहनीयः। पंचिंदियतिरिक्वजोणिया पुच्छा' पश्चेन्द्रियतिर्यग् नैरयिक जीव क्या बाल होते हैं ? या पण्डित होते हैं ? या पालपण्डित होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा ! नेरच्या बाला' नैरयिक बाल ही होते हैं क्योंकि वे सर्वथा विरति से रहित होते हैं। इसलिये वे 'णो पंडिया, नोपालपंडिया' न पंडित होते हैं और न वालपण्डित ही होते हैं। सर्वविरति के सद्भाव में बालपण्डितस्य होता है। नारक जीवों में न सर्व विरति है और न देशविरति ही है। ‘एवं जाव चरिंदियाणं' इसी प्रकार का कथन एकेन्द्रिय से लेकर चौहन्द्रिय पर्यन्त के जीवों में भी जानना चाहिये। क्योंकि यहां पर भी सर्वविरति और देश विरति का सर्वथा अभाव है-इस विषय का आलाप के प्रकार यहाँ अपने आप समझ लेना चाहिये । ___अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'पंचिंदियतिरिक्खजोणिया पुच्छा' है भदन्त ! पंचेन्द्रिय तियश्च क्या बाल होते हैं ? या पण्डित होते हैं। શું બાલ હેય છે? કે પંડિત હોય છે? કે બાલપંડિત હોય છે, તેના उत्तरमा प्रभु ४ छ है "गोयमा" 8 गौतम ? "नेरइया बाळा" नाहीय જીવે બાલજ હોય છે. કેમ કે-તેઓ સર્વથા વિરતિ રહિત હોય છે. તેથી ताणो पंडिया, णो बालपंडिया" ५त साता नथी भने पार पाडत પણ હોતા નથી. સર્વ વિરતિના સદ્ભાવમાં જ પંડિતત્વ હોય છે. અને દેશ વિરતિના સદૂભાવમાં બાલ પંડિતત્વ હોય છે. નારક છતમાં સર્વ विशति शिविरति होती नथी. "एवं जाव चउरिदियाण' मे शतर्नु બધું જ કથન એકેન્દ્રિયથી ચાર ઇન્દ્રિય સુધીના જીવમાં સમજવું. કેમ કે તેમાં પણ સર્વ વિરતિ અને દેશ વિરતિને સર્વથા અભાવ જ હોય છે. આ વિષયને આલાપ પ્રકાર અહિયાં સ્વયં સમજી લો. ३ गौतम स्वामी प्रसुने ये पूछे छे ,-"पंधि'दियतिरिक्खजोणिया पुच्छा" ३ सय ५'येन्द्रिय तिय य व शुमार छ ? ५ति छ ? શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨.
SR No.006326
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages710
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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