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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१७ ३०२ सू०२ जीवानां बालपण्डितत्वादिनिरूपणम् ३९१ तदा स न एकान्तबालः, अपि तु बालपण्डित एवेति भगवतः स्वमतम् । बालस्वादिकमेव चतुर्विंशतिदण्डकेषु निरूपयितुमाह - 'जीवा णं इत्यादि । 'जीवा णं भंते' जीवाः खलु भदन्त ! 'किं बाळा, पंडिया बाल पंडिया' बाळाः पण्डिताः बालपण्डिताः विरतिरहितो बालः सर्वविरतिमन्तः पण्डिताः, देशविरताः बाळ पण्डिताः ? भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम! 'बाळा वि' बाला अपि जीवाः 'पंडिया वि' पण्डिता अपि जीवाः 'बालपंडिया वि' बाल पण्डिता अपि जीवाः समुच्चयजीवेषु बालादीनां सर्वेषां सद्भावात् । 'नेरइया णं पुच्छा' नैरयिकाः ाः खलु पृच्छा हे मदन्त ! नारकाः बालाः पण्डिताः बालपण्डिता है पर उस पर सिद्धान्तकार का ऐसा कहना है कि वह एकान्तबाल नहीं हैं किन्तु बालपण्डित ही है। अब चौबीस दण्डकों में इसी बालस्वादिकी प्ररूपणा करने के लिये सूत्रकार आगे का प्रकरण प्रारम्भ करते हैं । इसमें गौतमने प्रभु से ऐसा पूछा है। 'जीवा णं भंते! किं बाला पंडिया बालपंडिया' हे मदन्त ! जीव क्या बाल हैं ? या पण्डित हैं ? या बालपण्डित है ? जो विरतिरहित होता है वह बाल है, सर्वविरति से युक्त जो होते हैं वे पण्डित हैं, तथा जो देशविरति से संपन्न होते हैं वे बालवण्डित हैं । इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं 'गोयमा' हे गौतम ! 'जीवा बाला वि, पंड़िया वि, बालपंडिया वि' जीव बाल भी होते हैं, 'पंण्डित भी होते हैं, 'बालपण्डित भी होते हैं। इस प्रकार सामान्य जीव में बालादिकों का सब का सद्भाव है। अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं- 'नेरइया णं पुच्छा' हे भदन्त | વિરાધના કરે તે તે એકાન્તમાળ છે. પરરંતુ તે વિષયમાં સિદ્ધાન્તકારાતુ એવુ કહેવુ છે કે તે એકાન્તમાળ નથી પરંતુ માલ પડિત જ છે. હવે ચાવીસ દડકાથી આ ખાતત્ય વગેરેની પ્રરૂપણા કરવા માટે સૂત્રકાર વિશેષ વિવેચન કરે છે. તેમાં ગૌતમ સ્વામી પ્રભુને એવુ' પૂછે છે કે"जीवाणं भंते! किं' बाला पंडिया बालपंडिया" हे भगवन् वा शुं मास छे ? કે પડિત છે ? કે માલ પડિત છે? જે વિરતિ રહિત હૈાય છે તે માલ કહેવાય છે. સવવરિત વાળા જે હાય તે પડિત છે. તેમજ જે દેશિવરતિવાળા होय ते सपंडित छे. या प्रश्नमा उत्तरमा प्रभु छे ! - " गोयमा ! " हे गौतम "बाला त्रि" मास पशु होय छे. 'पंडिया वि' पंडित पशु होय छे. तथा "बालपंडिया वि" ખાલ પ`ડિત પણ હાય છે. આ રીતે સામાન્ય જીવમાં અ લાદિકના સદ્ભાવ છે. હુવે ગૌતમસ્વામી નારકાના विषयमा असुने पूछे छे है- "नेरइया णं पुच्छा" हे भगवन् नारडीय वा શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨
SR No.006326
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages710
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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