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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१७ उ० १ ०३ शरीरेन्द्रिययोगानां क्रियानि० ३६९ 'एवं वेउब्धियसरीरेण वि दो दंडगा' एवं वैक्रियशरीरेणापि द्वौ दण्डको एकस्वबहुत्वरूपौ यथा औदारिकशरीरनिर्वर्त्तने जीवस्य जीवानां च त्रिचतुः पञ्चक्रियावत्वमिति द्वौ दण्डको तथा क्रियशरीरनिर्वर्तनेऽपि जीवस्य जीवानां चाश्रयणेन द्वौ दण्डको भवतः तदिह जीवैकत्वजीवबहुत्वाभिमायेण द्वौ दण्डको ज्ञातव्यौ । 'नवरं जस्स अत्थि वेउब्वियं' नवरं यस्यास्ति वैक्रियं-यस्य जीवस्य वैक्रियं शरीरमस्ति तस्यैव जीवस्य चैक्रियशरीराश्रयणेन दण्डकद्वयं भणितव्यम् नान्यस्येति वैलक्षण्यं ज्ञेयम् आलापप्रकारश्चेत्थम् 'जीवेणं भंते ! वेउब्वियसरीरं नारकों में औदारिक शरीर होता नहीं हैं-इसलिये यहां पर उनका ग्रहण हुआ नहीं हैं। 'एवं वेउब्वियसरीरेण विदो दंडगा' इसी प्रकार से क्रिय शरीर के साथ भी दो दण्डक एकवचन एवं बहुवचन रूप होते हैं। सो जैसे ये औदारिक शरीर के निर्वर्तन में एकजीव और अनेक जीवों के ये तीन, चार और पांच क्रियाओं के सम्बन्ध में कहे गये है उसी प्रकार से वैक्रियशरीर की निर्वर्तना में भी एक जीव और अनेक जीव के ये दो दण्डक तीन, चार, और पांच क्रियाओं के होने में कहलेना चाहिये । 'नवरं जस्स अस्थि वेउम्वियं' ये वैक्रियशरीर संबन्धी दो दण्डक सब जीवों में नहीं कहना है क्योंकि यह वैक्रियशरीर सब जीवों को नहीं होता है। अतः जिस जीव के या जिन जिवों को यह वैक्रियशरीर होता है, उसी जीव को या उन्हीं जीवों को वैक्रियशरीराश्रित दो दण्डक कहना चाहिये-इस विषय का आलाप प्रकार इस प्रकार से है-'जीवेणं भंते ! वेउब्धियसरीरं निव्वत्तेमाणे कइकिरिए ?
अडर थयु नथी. "वं वेउब्वियसरिरेण विदो दंडगा" त शत वैठिय શરીરવાળાની સાથે પણ એક વચન વાળા અને બહુવચન વાળા એમ બે દંડકો થાય છે. તે જેવી રીતે ઔદારીવાળા એક જીવ અને અનેક જીવોને ત્રણ, ચાર અને પાંચ ક્રિયાઓ લાગવાના વિષયમાં કહ્યું છે. એ જ રીતે વૈક્રિય શરીરવાળાના સંબંધમાં પણ એક જીવ અને અનેક જીવના આ બે ४.४४ , या२, भने पांय लिया। पान समयमा । "नवरं जस्स अस्थि वेउव्वियं" माय शरी२ सधी ४ मा वाम હોતા નથી. કેમ કે આ ક્રિય શરીર બધા જીવોને હોતું નથી જેથી જે જીવને અગર જે અને આ વૈક્રિય શરીર હોય છે. તે જીવને અથવા તે અને વૈકિય શરીર વાળા દેવ અને નારકીય બે દંડક કહેવા જોઈએ. આ विषयन मासापन प्रा२ मा प्रमाणे छे. "जीवे णं भंते ! वेउव्वियंसरीरं
શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૨