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________________ ३७० भगवतीने - निमत्तेमाणे कइकिरिए गोयमा । सिय विकिरिए सिय चउकिरिए सिय पंच किरिए । जीवाणं भंते ! वेउब्धियसरीरं निमत्तेमाणा कइ किरिया गोयमा ! ति किरिया वि चउकिरिया वि पंचकिरिया वि, एवं जाव कम्मगसरीरं' एवं थावत् कार्मणशरीरम् एवम् औदारिकवैकियशरीरवत् यावत् कार्मणशरीरपर्यन्तम् जीवैकत्वजीवबहुत्वाश्रयणेन व्यादिक्रियावत् जीवस्य जीवानां च वक्तन्यम् यावत् शब्देन आहारकतेनसोर्ग्रहणम् । 'एव सोइंदियं जाव फासिदियं' एवं श्रोत्रेन्द्रियं यावत् स्पर्शनेन्द्रियम् यथा शरीरनिवर्सने ब्यादिक्रियावस्व जीवस्य जीवानां वा कथितं तथा श्रोत्रेन्द्रियनिवर्तमानेऽपि व्यादि क्रियाक्वं ज्ञेयम् कियत्पर्यन्तं ज्ञेयं तत्राह-'जाव फासें दियं' यावत् चक्षुर्घाणरसनस्पर्शनेन्द्रिय गोयमा ! सिय तियकारिए, सिय च उकिरिए, सियपंचकिरिए। जीवाणं भंते !घेउब्वियसरीरं निव्वत्तेमाणा कइकिरिया ? गोयमा ! तिकिरिया पि, चउकिरिया वि, पंचकिरिया वि, एवं जाव कम्मगसरीरं' इस प्रकार औदारिक, वैक्रियशरीर के जैसा यावत् कार्मण शरीर पर्यन्त एक जीप और बहुत जीवों को आश्रय करके व्यादि क्रियावत्व एक जीव में एवं अनेक जीवों में कहलेना चाहिये। यहां यावत् शब्द से आहारक और तेजस शरीर का ग्रहण हुआ है। 'एवं सोइदिय जाव फासिदियं जिस प्रकार से औदारिक शरीरादि के निर्वर्तन में एक जीव और अनेक जीवों में व्यादि क्रियावत्ता कही गई है। उसी प्रकार से श्रोत्रेन्द्रिय के निर्वर्तन में भी एकजीव में तथा अनेक जीवों में व्यादि क्रियावसा जान लेनी चाहिये। यह ज्यादि क्रियावत्ता चक्षु, घ्राण, और स्पर्शन इन इन्द्रियों की निर्वर्तना में भी इसी प्रकार से एक जीव में और अनेक निव्वत्तेमाणे कइकिरिए गोयमा सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए सिय पंचकिरिए जीवा णं भंते ! वेउब्धियसरीरं निव्वत्तेमाणा कइकिरिया, गोयमा ! तिकिरिया वि चउकिरिया वि पंचकिरिया वि "एवं जाव कम्मगसरीरं" शत ઔદારિક અને વૈકિય શરીરની માફક યથાવત્ કામણ પર્યંતના એક જીવ અને બહુ જીવોને ઉદ્દેશીને ત્રણ વિગેરે ક્રિયાઓ સમજી લેવી. અહિયાં યાવત શબ્દથી આહારક અને તેજસ શરીરનું ગ્રહણ થવું छ. "एवं सोइदियं जाव फासिदिय" मौहार शरीरना स भा मे જીવ અને અનેક જીવમાં ત્રણ વિગેરે ક્રિયાપણું સમજી લેવું. આ ત્રણ વિગેરે ક્રિયાપણું. ચક્ષુ, ઘાણ (નાસિકા) અને સ્પર્શન આ ઈન્દ્રિયેના સંબંધમાં પણ એજ પ્રમાણે એક જેમાં અને અનેક જેમાં ત્રણ ચાર શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨
SR No.006326
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages710
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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