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भगवतीस्त्रे देशाश्च द्वीन्द्रियस्य च देशाः 'अहवा एगिदियदेसाय बेइंदियाणय देसाय' अथवा एकेन्द्रिदेशाश्च द्वीन्द्रियाणां च देशाः 'अहवा एगिदियदेसाय तेइंदियस्स य देसे' अथवा एकेन्द्रियदेशाश्च त्रीन्द्रियस्य च देशः इत्यादि दशमशतकापेक्षयाऽत्र यद्वैलक्षण्यं तदर्शयितुमाह-'नवरं' इत्यादि । 'नवरं देसे मु अगिदियाणं आइल्लविरहियो नवर देशेषु अनिन्द्रियाणाम् आदिमविरहितः अनिन्द्रियसंवन्धिनि देशविषये भंगकत्रये आदिमभङ्गो न वाच्य इत्यर्थः 'अहवा एगेंदियदेसाय अणिदियस्स देसे' इत्याकारका प्रथमभङ्गको दशमशतकीयाग्ने यीप्रकरणप्रतिपादितोऽपि अत्र नेव वक्तव्यः यस्मात केवलिसमुद्घाते कपाटाद्यवस्थायां लोकस्य चरमान्ते प्रदेश वृद्धिहानिकृतलोकदन्तकसदाभात् अनिन्द्रियस्य बहूनां देशानामेव संभवो नत्वेवेइंदियस्स य देसा ?' अथवा वहां एकेन्द्रिय जीवों के देश हैं और एक दीन्द्रिय जीव के अनेक देश हैं 'अहवा एगिदियदेसाय बेइंदियाणय देसाय' अर्थात् एकेन्द्रिय के बहुत देश और बहुत द्वीन्द्रियों के बहुत देश हैं 'अहवा एगिदिय देसा य तेइंदियस्स य देसे' अथवा एकेन्द्रिय जीवों के अनेक देश हैं और तेन्द्रिय जीव का एकदेश है । इत्यादि दशम शतक की अपेक्षा यहां जो वैलक्षण्य है उसे दिखाने की इच्छा से सूत्र कार 'नवरं देसेसु अणिदियाणं आहल्लविरहिओ' ऐसा कहते हैं इसमें उन्होंने कहा है कि देशों में अनिन्द्रिय जीवों को आदिम विकल्प से रहित कहना चाहिये । अर्थात्-अनिन्द्रिय सम्बन्धी देश विषय में भंगत्रय में यह 'अहवा एगे दियदेसाय अगिदियस्स देसे' आदिम भंग नहीं कहा गया है । क्योंकि यह वहां संमवित ही नहीं है। इस का कारण ऐसा है कि केवलि समुदघात में कपाटादि अवस्था में लोक के चरमान्त में प्रदेशवृद्धि हानिकृन विषमता होने के कारण लोक के अन्त छ, भने से मेन्द्रियाणा न मने देश छे, "अहवा एगिदिय देसा य बेइंदियाण य देसा य" अर्थात मेन्द्रियवाणयाना घर। हेश। छे. सर. मेधान्द्रयाना ५ घाशी छे. "अहवा एगिदिय देसा य तेइंदियस्स य देसे" अथवा मेन्द्रिय सवाना मने देश छे. मन छन्द्रिय વાળા અને એક દેશ છે. વિગેરે કથન દસમા શતકના પહેલા ઉદ્દેશામાં કહ્યા પ્રમાણે સમજવું. દશમા શતક કરતાં અહિંયા જે વિષેશતા છે તે બતાવવા भाटे सूत्र॥२ ४ छ , "नवरं देसेसु अणिदियाणं अइल्लविरहिओ" शमां ઈન્દ્રિય વગરના જીવન એટલે કે અનીટ્રિયેને પહેલા વિકલપ વગરના કહ્યા છે. અર્થાત્ અનીન્દ્રિય સંબંધી દેશ વિષયમાં ત્રણ ભંગમાં આ પ્રમાણે કહ્યું છે– "अहवा एगिदियदेसाय अणि दियस्स देसे" पडेसे म ह्यो नथी. भ पहे। ભંગને ત્યાં સંબંધ હોતું નથી. તેનું કારણ એ છે કે કેવલી સમુદ્યાતમાં કપાટ વિગેરે અવસ્થામાં લેકના ચરમાન્ત ભાગમાં પ્રમાણ વિષયના પ્રકરણમાં પ્રદેશની વૃદ્ધિને હાનીરૂપ વિષમતા હોવાને કારણે લેકના અંતમાં
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨