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________________ - - १२ भगवतीसूत्रे मयेन संदंशकेन 'उबिहमाणे वा' उद्विध्यन् उत्क्षिपन् इत्यर्थः, 'पबिहमाणे वा' प्रविध्यन् प्रक्षिान् इत्यर्थः 'कइकिरिए' कतिक्रियः-लोहप्रतापकाग्न्यागारेलोहखण्डं दत्वा तं लोहं लोहनिर्मितसंदंशेन अर्चमधः कुर्वन् पुरुषः कतिभिः क्रियाभिः स्पृष्टो भवति, इति प्रश्ना, भगवानाह-'गोयमे त्यादि 'गोयमा' हे गौतम ! 'जावं च णं से पुरिसे' यावत् च खलु स पुरुषः 'अयं अयकोर्टसि' अयो लोहम् अयः कोष्ठे 'अयोमरणं संडासएणं' अयोमयेन लोहनिर्मितेन संदंशकेन 'उन्धिहइ वा पबिहइ' उद्विध्यति-उत्क्षिपति वा प्रविध्यति-प्रक्षिपति वा 'तावं च णं से पुरिसे' तवात् च खलु स पुरुषः 'काइयाए जाव पाणाइवायकिरियाए' कायिक्या यावत् पाणतिपातक्रियया, अत्र यावत्पदेन-अधिकरणी, माद्वेपिकी, परितापिनीकी क्रियाणां तिमृणामपि ग्रहणं भवति, 'पंचहि किरियाहिं पुढे पश्चभिः क्रियाभिः स्पृष्टः अयः प्रतापनार्थे कुम्ले लोहं प्रक्षिप्य प्रज्वलतं तम् लोहे के बने हुए संडास से 'उब्धिहमाणे वा पबिहमाणे वा ऊँचा नीचा करता है-अर्थात् उलटता पलटता है-ऐसी स्थिति में वह पुरुष 'कइकिरिए' कितनी क्रियाओंवाला होता है-तात्पर्य पूछने का यह है कि भट्टि में रहे हुए लोहे को जो पुरुष संडासी द्वारा उसी के भीतर उसे उलटता पलटता है उस पुरुष को कितनी क्रियाएँ लगती हैं ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु उनसे कहते है-'गोथमा! जावं च णं से पुरिसे' हे गौतम ! जितने समय तक वह पुरुष अयं अयकोर्सेसि-लोहेको लोह कोष्ट में-भट्ठी में 'अयोमएणं संडासरणं' लोहनिर्मित संडास के द्वारा 'उबिहइ वा पविहह वा 'ऊँचा नीचा करता है । 'तावं च णं से पुरिसे' तप तक-उतने समय तक-वह पुरुष 'काइयाए जाव पाणा. इवायकिरियाए' कायिकी क्रिया से लेकर प्राणातिपात तक की पांचों उनी सायसीथी “उबिहमाणेवा पबिहमाणेवा" ये नये २ छे. मर्थात् GAIसूसटी ३२वे छे. तवी स्थितिमा पु३५ " कइकिरिए" की કિયાવાળે થાય છે પૂછવાનું તાત્પર્ય એ છે કે ભઠ્ઠીમાં રહેલા લેખંડને જે પુરૂષ સણસી વડે ભઠ્ઠીની અંદર તેને ઉલટસૂલટી ફેરવે છે તે પુરૂષને કેટલી કિયા લાગે છે? उत्तर-महावीर प्रभु ४ छ है “गोयमा ! जावं च णं से पुरिसे" के गीतम! रेट। समय सुधी तोमन महीमा “अयोमएणं संडासएणं" उनी सासी 43 " उव्विहइ वा पव्विहइ वा” या नीया ४२ छे. "तावं च णं से पुरिसे" tan समय सुधी ते ५३५ “काइयाए जाव पाणा. इवायकिरियाए" या लियाथी र मधि:२९॥ी, प्रादेषी परिताप શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨
SR No.006326
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages710
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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