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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१६ उ०४ सू०२ शकेन्द्रविषयकप्रश्नस्पष्टीकरणम् १४९ यत्रैव जम्बूद्वीपो द्वीपः 'जेणेव भारहे वासे' यत्रैव भारत वर्षम् 'जेणेव उल्लुयतीरे नयरे' यत्रैव उल्लुकतीरं नगरम् 'जेणे। एगजंबूए चेइए' यत्रैव एकजम्बूक चैत्यम् 'जेणेव मम अंतिए' यत्रैव ममान्तिकम् तेणेव पहारेत्थ गमणाए' तत्रैव माधार्षीत् गमनाय, हे गौतम ! यत्राहं तिष्ठामि तत्रैव आगन्तुं पस्थित इत्यर्थः । 'तए णं से सक्के देविंदे देवराया' ततः खलु स शक्रो देवेन्द्रो देवराजः 'तस्स जहां जम्बूद्वीप नामका द्वीप था, 'जेणेव भारहे वासे' उसमें भी जहां भारत वर्ष नामका क्षेत्र है। 'जेणेव उल्लुयतीरे नथरे' उसमें भी जहां उल्लुकतीर नामका नगर है, 'जेणेव एगजंबूए चेहए' उसमें भी जहाँ एक जंबूक नामका उद्यान है 'जेणेव मम अंतिए तेणेव पहारेत्थगमणाए' उसमें भी जहां मैं था वहां चलने के लिये उसने अपनी तैयारी की 'जहा सूरियामस्स' इस कथन से यहां यह पाठ सूचित किया गया है। 'तिहिं परिसाहिं सत्तहिं अणीएहिं सत्तहि अणीयाहिवई हिं, सोलसहिं आयरक्खदेवसाहसीहिं अन्नेहिं य बहहिं महासामाण. विमाणवासीहिं वेमाणिएहिं देवेहिं सद्धि संपरिवुडे' इत्यादि । इस प्रकार के ठाट घाट से वह हे गौतम ! मेरी तरफ आने के लिये प्रस्थित हुआ। 'तए णं से सक्के देविंदे देवराया' इसके बाद उस देवेन्द्र पात्राना Aqा पू°४ “जेणेव जबूद्दीवे हीवे" यi jी५ नमन द्वीप हत “ जेणेव भारहे वासे" तमा ५ या मारत क्षेत्र नामनु क्षेत्र छ, "जेणेव उल्लुयतीरे नयरे" मा ५५ ल्यi Gesती२ नामनु ना२ छ"जेणेव एगजंबूए चेइए"तभा पशु स्यां पू नाभनु Gधान छ, " जेणेव मम अंतिए तेणेव पहारेत्थ गमणाए" a Geदुती२ नामा ५g न्यांत भान छु त्यो मापानी त हेव तयारी ४२री “जहा सूरिया भस्स" थनथा मडिया मा पाइन। स थ छे. “तिहि परिसाहि सत्तहिं अणिएहि सत्तहिं अणियाहिवईहि सोलसहि आयरक्खदेवसाहस्सीहि अन्नेहि य बहूहि महासामाणविमाणवासीहि वेमाणिएहि देवीहि सद्धिं संपरिडे" ઈત્યાદિ આ પાઠને અર્થ આ પ્રમાણે છે. ત્રણ પરિષદાઓની સાથે સાત અનીકે સૈન્ય)ની સાથે અને સાત સેનાપતિની સાથે સળહજાર આત્મરક્ષક દેવેની સાથે અને બીજા પણ અનેક મહાસમાવિમાનમાં રહેનારા વૈમાનિક દેવ દેવીની સાથે તેણે પ્રસ્થાન કર્યું આ રીતના ઠાઠમાઠથી તે દેવે મારી પાસે આવવા પ્રસ્થાન કરા" "तए गं से सक्के देविंद देवराया" ते पछी त हेवेन्द्र १२॥ A " तस्स શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨
SR No.006326
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 12 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages710
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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