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भगवतीसूत्रे
'अवाहद्धं' अव्यादिग्धाम् अवक्रां सरलामित्यर्थः, 'सपत्तियं' सपात्रिकां साधारामित्यर्थः 'अतिक्खेण परसुणा अवकमेज्जा' अतितीक्ष्णेन परशुना अवक्रामेत्-महारं कुर्या दित्यर्थः कविद युवा स्वस्थो बलवान् अतितीक्ष्णपरशुना अति सरलकाष्ठखण्डोपरि महारं कुर्यात् तत्र सरळतयैव तत्काष्ठस्य खण्डनं भवति तथैव दाष्टन्तिकोऽपि योज्यः इति समुदितार्थः । 'तपणं से पुरिसे नो महंताई महंताई सदाई करे' ततः खलु स पुरुषो न महतो महतः शब्दान् करोति प्रत्युत 'महंताई महं ताई दलाई अवाले' महान्ति महान्ति दलानि काष्ठखण्डानि अवदारयति - छित्वा काष्ठं सखण्डं करोति 'एवामेत्र गोयमा' एवमेव हे गौतम! अचिक्कणादि गुणविशिष्टकाष्ठछेदनवदेव, समणाणं णिग्गंथाणं' श्राणानाम् निर्ग्रन्यानाम् 'अहा बादरा कम्मा' यथा वादराणि स्थूलानि कर्माणि 'सिढिली कथा " अव्यादिग्ध हो, अवका - सरल हो । 'सपत्तियं' साधार हो, अतितिक्खेण परसुणा' अतितीक्ष्ण परशु के द्वारा 'अवक्कमेज्जा' काटे तो वह उसे सरलता के साथ काट देता है, इसी बात को आगे स्पष्ट करने के लिये कहा गया है- 'तए णं से पुरिसे नो महंताई महंताई सहा' इस प्रकार कि उस अतिसरल काष्ठ खण्ड के ऊपर परशु द्वारा प्रहार करता हुआ वह युवादि विशेषणोंवाला पुरुष काटते समय हुंकार आदिरूप शब्दों का उच्चारण भी नहीं करता है और सरलता के साथ " महंताई २ दलाई अवद्दालेइ" उस काष्ट के बड़े २ खण्ड टुकड़े भी कर देता है "एवामेव गोयमा" इसी प्रकार से हे गौतम! अचिक्कणादिगुणविशिष्ट काष्टच्छेदन की तरह ही "समणार्णं निग्र्गथाणां " श्रमण निर्ग्रन्थों के "अहाबायराइ' कम्माई” यथा बादरकर्म
होय " सपत्तियं " आाधारवाणु होय सेवा " अतितिश्खेण परसुणा " अत्यंत धारवाजी डुडाडीथी " अवक्कमेज्जा" अये तो ते ३ष से लाउडाने घालीन સરળતાથી કાપી દે છે. એજ વાતને વધારે સ્પષ્ટ કરવા માટે કહે છે કે “ तर णं से पुरिसे नो महंताई महंताई सदाई " ३५२ हे विशेषलेोवाणा તે અત્યંત સરળ લાકડાની ઉપર પ્રહાર કરતા એવા તે યુવાદિ વિશેષણેવાળા પુરૂષ કાપતી વખતે હુંકાર વગેરે શબ્દના ઉચ્ચાર કરતા નથી અને सरणताथी " महंताई महंताई दलाई प्रवद्दालेइ " ते बाउडाना भोटा भोटा ४८४| उरी हे छे. “ एवामेय गोयमा ! ये रीते हे गौतम! अभिश्राहि 66 समणाण' निगंधाण " निर्भ :अहा बायराई कम्माई " यथा बाहर भ 'सिढिली कयाइं " मह
શ્રમણ્
ગુણવાળા લાકડાને કાપવાની માફ્ક જ थाना
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૨